श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  स्त्री जीवन के कटु सत्य को उजागर कराती एक सार्थक रचना ‘इस सदी में भी । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 30– विशाखा की नज़र से

☆ इस सदी में भी  ☆

 

चहकती हो मुंडेर पर

लगाती हो आवाज़

दाना लेकर आऊँ तो

उड़ जाती क्यों बिन बात

 

ओ ! चिरैया

तुम स्त्रियों की भांति कितनी

डरी , सहमी हो

शायद ! तुम भी भूली नहीं हो

पिंजरा और अपना इतिहास

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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