हेमन्त बावनकर
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी आज ही लिखी एक रचना “डायरी के पन्ने”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 15 ☆
☆ डायरी के पन्ने ☆
बचपन से लिखी
डायरी के अपरिपक्व पन्ने अब
बेमानी हो गए।
कुछ पन्नों को पढ़
भूली बिसरी यादों को याद कर
कुछ शर्माए कुछ मुस्कराये
और थोड़ा सा
रोमानी हो गए।
पीले होते पन्नों पर
जो उतारे थे
एक एक लफ्ज
वक्त के आंसुओं से भीगकर वो
आसमानी हो गए।
बड़ी शोहरत मिली थी
पन्नों के झूठे किस्सों पर,
अपने तुम्हारे
सच्चे किस्से क्या लिख दिये
नादानी हो गए।
एक डायरी ऐसी भी है
क्यों दिखाई ही नहीं देती ताउम्र
कौन लिख रहा है उसे ?
हरेक के जहन में हर पल
ज़िंदगी के हर पल
शीशे के दोनों ओर पाक साफ
जानता हूँ तुम यही कहोगे कि
रूहानी हो गए।
© हेमन्त बावनकर, पुणे
बहुत बढ़िया
Thanks