डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है उनके अतिसुन्दर वर्तमान समय के 10 दोहे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 44 ☆
☆ वर्तमान समय के 10 दोहे ☆
बाहर में विचरण करें, पशु – पक्षी स्वच्छंद।
भीतर मानव हैं विकल, गतिविधियां सब मन्द।।
मेल जोल छूना मना, हाथों पर प्रतिबंध।
मूंह नाक पर मुश्क है, ठप्प पड़े संबंध।।
बारह दिवस पुनः शेष हैं, क्या फिर होगा बन्द।
रैन – दिवस ये चल रहा, मन में अंतर्द्वन्द।।
समय कटे कटता नहीं, कल की चिंता आज।
खबरें पल-पल उड़ रही, बनकर खूनी बाज।।
मन बहलाने को यदि, टीवी. खोलें आप।
इनमें भी आता नजर, कोरोना का श्राप।।
परिचर्चा में देख सुन, टीवी. पर हैरान।
बेशर्मी से टूटते, मानवीय प्रतिमान।।
सौ शब्दों की भीड़ में, पल्ले पड़े न एक।
अपनी-अपनी डफलियां, खेलें फेकम-फेंक।।
हुआँ-हुआँ का शोर ज्यों, वन में करे सियार।
उदघोषक खुश हो रहा, टीआर पी से प्यार।।
उठते बैठे दिन कटे, जगते सोते रात।
आओ हम मिल दें सभी, कोरोना को मात।।
बाहर के इस मौन में, अंदर उतरें आप।
बहुत जपा संसार को, अब अपने को जाप।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 989326601