श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – जग, सजग का है ☆
प्रश्न- जग सो रहा है और तुम अब तक जाग रहे हो?
उत्तर- जग शब्द स्वयं कहता है- जग, नेत्र खुले रख। स्थूल की निद्रा में भी सूक्ष्म को जागृत रख। जग में आगमन जगने, जगे रहने, जगाते रहने और जगाये रखने के लिए है। जग में आकर जो जगे रहने का अर्थ नहीं समझा, वह अज-सा काल का भक्ष्य है। जो जगता रहा, जगाता रहा, सजगता उसका लक्ष्य है।
….ध्यान रहे जग, सजग का है।
सजग रहें। घर में रहें। सुरक्षित और स्वस्थ रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
सोमवार 1 जुलाई 2018, रात्रि 1:27 बजे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
स्थूल की निद्रा में भी सूक्ष्म को जागृत रखना…चिंतक की सोच को नमन!
जग , सजग का है – जनमानस जगाने का अप्रतिम प्रयास संजय जी !