डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे “।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 43 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
हमने तो अब कर लिया, जीवन का अनुवाद।
पृष्ठ – पृष्ठ पर लिख दिया, दुख,पीड़ा, अवसाद।।
तेरा-मेरा हो गया, जन्मों का अनुबंध।
मिटा नहीं सकता कभी, कोई यह संबंध।।
रात चाँदनी कर रही, अपने प्रिय से बात।
अंधियारी रातें सदा, करतीं बज्राघात।।
दर्शन बिन व्याकुल नयन, खोलो चितवन-द्वार।
बाट पिया की देखती, विरहिन बारंबार।।
रात चाँद को देखकर, होता मगन चकोर।
नैन निहारे रात भर, निर्निमेष चितचोर।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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