श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री संतोष नेमा जी की एक समसामयिक भावप्रवण कविता “कोरोना वायरस !!”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं . )
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 34 ☆
☆ कोरोना वायरस !! ☆
वो सब को
एक नजर से
देखता है..!
जाति-पांति
धर्म को नहीं
लेखता है.!!
उसकी नजर में
सब एक समान हैं.!
सब का ही करता
वो सम्मान है.!!
उसके शरण में
जो भी आता है.!!
वो भव सागर से
मुक्ति पा जाता है.!!
वो मान-अपमान
सुख-दुख,
लाभ-हानि से परे है.!
उसकी झोली में
बड़े-बड़े नत मस्तक
हाथ जोड़ खड़े हैं.!!
वो रिश्ते-नाते
दोस्ती-यारी
सभी पर भारी है.!
उसकी छवि
इस दुनिया से
बिल्कुल न्यारी है.!!
बड़ी बड़ी
शक्तियाँ
उसके आगे
महज एक
खिलौना हैं.!
उसकी
मर्जी से ही
यहाँ सब कुछ
होना है.!!
वो सर्व व्यापी
काल दृष्टा है.!
उससे पंगा
समझो
भिनिष्टा है..!!
वो मन्दिर, मस्ज़िद
चर्चों और गुरुद्वारों में.!
वो शहर शहर
हर देश,गाँव
गलियारों में.!!
उसकी महिमा
बड़ी निराली है.!
वो आम नही
बड़ा बलशाली है.!!
यह सुनते ही
सामने खड़ा
दोस्त बोला.!
सीधा क्यों नहीं
कहता ये
भगवन हैं भोला..!!
हमने ज्यूँ सुनी
दोस्त की वाणी.!
झट अपनी
भृकुटि तानी.!!
और कहा सुन.!
अपना माथा धुन.!!
ये भगवन नहीं
कोरोना वायरस है
ज्यूँ होता लोहा सोना
छूता जब पारस है..!!
यूँ ही जब कोई
संक्रमित को
छूता है.!
फिर वो भी
बन जाता
अछूता है.!!
ये बड़ी वैश्विक
बीमारी है.!!
जिसने
सारी दुनिया की
हालत बिगाड़ी है..!!
इसलिए दोस्त
जरा दूर से बात
करना.!
और “संतोष” को
हाथ जोड़
नमस्कार करना..!!
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
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