श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – संजय ☆
सारी टंकार
सारे कोदंड
डिगा नहीं पा रहे,
जीवन के महाभारत का
दर्शन कर रहा हूँ,
घटनाओं का
वर्णन कर रहा हूँ,
योगेश्वर उवाच
श्रवण कर रहा हूँ,
‘संजय’ होने का
निर्वहन कर रहा हूँ!
# घर में रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
रात्रि 9:14 बजे, 3अक्टूबर 2015
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजय होने का निर्वहन कर आप सबको परिस्थितियों से अवगत करा रहे हैं।
धन्यवाद आदरणीय।
नयनों की भी विचित्र गाथा है , जहाँ एक ओर महाभारत के संजय नेत्रहीन राजा को एक एक पल के युद्ध स्थल का लेखा-जोखा सुना रहे हैं वहीं
दिव्य दृष्टि प्रदत्त संजय भारद्वाज नेत्रप्राप्त व्यक्तियों के बीच योगेश्वर उवाच का श्रवण करा दोहरे दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं – अहोआनंदम् की इससे बढ़कर क्या गाथा हो सकती है ?
अपनी माताश्री के साथ -साथ प्रत्येक माता के हृदय को ठंडक पहुँचाते इस निर्वहन को मेरा सादर नमन … चिरंजीवी भव
विस्तृत आत्मीय प्रतिक्रिया एवं आशीष के प्रति नतमस्तक हूँ।