सुश्री निशा नंदिनी भारतीय
(सुदूर उत्तर -पूर्व भारत की प्रख्यात लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी के साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना की अगली कड़ी में प्रस्तुत है मातृ दिवस पर एक समसामयिक विशेष रचना माँ का वात्सल्य ।आप प्रत्येक सोमवार सुश्री निशा नंदिनी जी के साहित्य से रूबरू हो सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना #49 ☆
☆ माँ का वात्सल्य ☆
माँ तो सिर्फ माँ होती है
हो चाहे पशु-पक्षी की
पथ की ठोकर से बचाकर
रक्षा करती बालक की
हाथ थाम चलती शिशु का
पल-पल साथ निभाती है
थोड़ा-थोड़ा दे कर ज्ञान
जीवन कला सिखाती है।
विस्तृत नीले आकाश सी
धरती सी सहनशील होती
टटोल कर बालक के मन को
आँचल की घनी छाँव देती
पीड़ा हरती बालक की
खुशियों का हर पल देती
पिरो न सकें शब्दों में जिसे
माँ ऐसी अनमोल होती।
रचना माँ से सृष्टि की
माँ जननी है विश्व की
अद्भुत है वात्सल्य माँ का
माँ से तुलना नहीं किसी की
बेटी, बहन, पत्नी बनकर
चमकाती अपने चरित्र को
माँ बनकर सर्वस्व अपना
देती अपनी संतान को।
© निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम
9435533394