श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण)

 

अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।

सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।16।।

 

जो पवित्र तत्पर प्रसन्न ,उदासीन अनपेक्ष

फल त्यागी हर कर्म का ,भक्त वो प्रिय सापेक्ष ।।16।।

 

भावार्थ :  जो पुरुष आकांक्षा से रहित, बाहर-भीतर से शुद्ध (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखना चाहिए) चतुर, पक्षपात से रहित और दुःखों से छूटा हुआ है- वह सब आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त मुझको प्रिय है।।16।।

 

He who is free from wants, pure, expert, unconcerned, and untroubled, renouncing all undertakings or commencements-he who is (thus) devoted to Me, is dear to Me.।।16।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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