श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम कविता “ममता के सागर से निकली”। अप्रतिम कविता , स्त्री के माँ का स्वरुप और अद्भुत शब्दशिल्प। इस सर्वोत्कृष्ट कविता के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 46 ☆
☆ कविता – ममता के सागर से निकली ☆
ममता के सागर से निकली
लेकर जीवन अमृत धार
कर सिंचित अपने तन से
किया नव सृष्टि का संचार
भावना की डोरी में बंधी
प्यार के सपने संजोए हुए
पाजेब चुनर सिंदूर चूड़ियां
धारण कर श्रंगार किए
दीप जलाती तुलसी चौरा
सुख शांति का लेकर भार
ममता के सागर से निकली
लेकर जीवन अमृत धार
कोख रखा नव महीनों तक
समय बिताई पल छिन संवार
बिसरा गई सारे कष्टों को
शिशु दिया जब जन्म साकार
बनकर ममता की जननी
जीवन मिला उसको एक बार
ममता के सागर से निकली
लेकर जीवन अमृत धार
शब्दों में मां को उतारू कैसे
जीवन जहां से प्रारंभ हुआ
उन पर क्या मैं गीत लिखूं
उल्लासित मन हुआ महुआ
रीति-रिवाजों को सिखलाती
मां का निर्मल छलकता प्यार
ममता के सागर से निकली
लेकर जीवन अमृत धार
नवल इतिहास सजाने चली
मानवता की प्रतिमूरत है
देवो को भी वश में कर ले
मां में शक्ति समाहित हैं
भीगे हुए नयनों में भी समाए
मधुर मधुर सुर सरगम तार
ममता के सागर से निकली
लेकर जीवन अमृत धार
कर सिंचित अपने तन से
किया नव सृष्टि का संचार
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश