श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  एक  समसामयिक सार्थक व्यंग्य  “स्वर्ग के द्वार पर करोना टेस्ट।  दान महात्मय पर रचित  अकल्पनीय रचना । कोरोना का खौफ इस तरह बैठता जा रहा है कि स्वप्न  में  भी कोरोना और सामाजिक परिवेश के चित्र दिखाई देने लगे हैं। फिर स्वप्न को स्वप्न की ही दृष्टि से देखना चाहिए, जाति, धर्म और राजनीति की दृष्टि से  कदापि नहीं। श्री विवेक जी  की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 47 ☆ 

☆ व्यंग्य – स्वर्ग के द्वार पर करोना टेस्ट 

दानं वीरस्य भूषणम्.गुरूजी ने उन्हें जीवन मंत्र समझाया  था कि ये सारे करेंसी नोट तो यहीं रह जाते हैं, ऊपर तो केवल दान, दया,मदद की कोमल भावना के नोट ही चलते हैं.इस भाव को उन्होने जीवन में अपना लिया था और इस दृष्टि से निश्चित ही वे बड़े पुण्यात्मा थे.  उन्होने सबकी सदैव हर संभव मदद की थी. प्रधान मंत्री सहायता कोष की ढ़ेर सारी रसीदें उनके पास सुरक्षित हैं. १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध का मौका रहा हो, कहीं भूकम्प आया रहा हो या बाढ़ की विपत्ति से देश प्रभावित हुआ हो, अकाल पड़ा रहा हो या आगजनी की विपदा आई हो,उनसे जितना बन पड़ा मुक्त हृदय से उन्होने सहयोग किया. पहले चैक से राशि भेजते थे, फिर ड्राफ्ट का जमाना आया, सीधे खाते में राशि जमा करने का मौका आया और अब तो घर बैठे नेट बैंकिंग से या मोबाईल एप के जरिये ही मदद पहुंचाने की  सुविधायें दी जाने लगी हैं. कुछ निजी संस्थानो को उनके इस भामाशाही नेचर का ज्ञान जाने कैसे हो जाता है ? शायद वे सहायता कोष के डाटा बेस में सेंध लगा लेते हैं, क्योंकि उनके पास कोकिल कंठी युवा लडकियो के स्वर में उन संस्थाओ को भी दान देने की प्रार्थना के फोन आने लगते हैं. वे यथा संभव उन्हें भी निराश नही करते. मतलब उन्होने स्वयं की ऐसी दानी प्रोफाईल बना ली थी कि चित्रगुप्त जी को स्वर्ग में उनकी सीट आरक्षण में कहीं कोई अंदेशा न हो.

चीन से कोरोना क्या आया वैश्विक महामारी फैल गई, इससे पहले कि वे इस पेंडेमिक राहत कोष में किसी तरह का कोई दान धर्म कर पाते इस पावन धरा पर उनका जीवन काल पूरा हो गया. लाकडाउन के चलते सड़कें, गलियां,शहर सब वैसे ही वीरान थे, बिना ट्रेफिक में फंसे मिस्टर एम राज अर्थात यमराज आ धमके. उन्होंने प्रसन्न मन, धरा को त्याग वासांसी जीर्णानी यथा विहाय को ध्यान रख नश्वर शरीर त्याग गोलोक गमन किया.अपने दान धर्म पर उन्हें भरोसा था,  मन ही मन उन्होने सोचा चलो अब स्वर्ग में अप्सराओ के नृत्य, गंधर्वो का संगीत सुनने का समय आ गया है. लेकिन यह क्या जैसे ही वे स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे उनको द्वार पाल ने रोक लिया. उन्हें लगा यार गलती हो गई मैं दान की संभाल कर रखी रसीदें तो ला  ही नहीं पाया. उन्होने स्वयं को कोसा अरे कम से कम उनकी स्कैन कापी डिजिटल लाकर में डाल ली होतीं तो आज काम आतीं. फिर उन्हें ध्यान आया कि हां इनकम टैक्स रिटर्न में तो हर बार रसीदें लगाईं थी और एट्टी जी में उसकी छूट भी ली थी, मतलब सारे दान के डिटेल्स रिकवर करने के चांसेज हैं. वे द्वार पाल को कोने में ले जाकर अपने टैक्स रिटर्न्स निकलवाने के लिये पैन नम्बर बताना चाहते थे, जो उन्हें जगह जगह लिखते हुये मुखाग्र याद हो गया था. किन्तु वे ऐसा कुछ करते इससे पहले ही उन्होने देखा कि द्वार पर एक सुंदर नर्स और एक डाक्टर भी थे, जो लोगों के माथे पर पिस्तौल सा यंत्र ताने लोगों का तापमान ले रहे थे, नर्स गले से स्वाब, नाक से नेजल एस्पिरिट निकाल रही है, और सारी पुण्यात्माओ को बेवजह २१ दिनो के क्वेरेंटीन में स्वर्ग से बाहर बनाये गये टेंट के कैम्प में भेजा जा रहा था. उन्हें कुछ गुस्सा भी आया कैसे भगवान हैं जो चाइना के कोरोना से जीत नही पाये हैं. किंतु जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये का ध्यान कर उन्होने सब्र से काम लिया और सारे सेंपल देकर लाइन से क्वेरेंटीन कैंम्प की ओर बढ़ चले. वहां पहले से ही कुछ जमाती पलंग पर जमे दिखे, पूछा तो पता हुआ कि कब्रिस्तान फुल चल रहे थे इसलिये हूरों की वेटिंग के लिये कुछ इंटर रिलीजन एग्रीमेंट हुआ है जिसके चलते इस केम्प में सीट्स खाली होने से इन लोगों को यहां रखा गया था. वे पलंग पर लेट ही रहे थे कि एक कर्कश आवाज आई कब तक लेटे रहियेगा, उठिये चाय बनाइये, आज आपकी बारी है. गहरी तंद्रा टूट गई. पत्नी चाय बनाने का आदेश दे रही थी, रामदीन की छुट्टी कर दी थी उन्होंने और बारी बारी से पति पत्नी किचन का जिम्मा संभाल रहे थे. उन्होंने चाय का पानी चढ़ाते हुये तय किया आज पी एम केयर फंड में ग्यारह हजार डाल देंगे, आखिर परलोक भी तो सुधारना है.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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