डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “मन ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 8 ☆

☆  मन  ☆

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

घर के एक एक कोने में मेरा मन,

न जाने कहाँ कहाँ भटकता मेरा मन,

इस मन को पकड़ लेना चाहती हूँ, मन ही मन में,

कभी रोकती हूँ, कभी टोकती हूँ, ना जाए इधर उधर मेरा मन,

कभी पतंग सा  उड़ता मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

कभी घूमने निकलूँ तो, चाट के ठेले पे ललचाता मेरा मन,

कभी रंगीन कपड़ों की दुकानों पर, रुक जाता मेरा मन,

कभी पार्क में बैठूँ तो, पता नहीं कहाँ खो जाता मेरा मन,

कभी पुरानी  यादों में मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

दीपावली के फटाकों से उत्साहित मेरा मन,

होली के रंगों से रंगा हुआ मेरा मन,

बैसाखी मे नाचता हुआ मेरा मन,

हर त्यौहार में आनन्दित मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

हर दुख में रोता चीखता मेरा मन,

किसी सहारे, किसी कंधे को ढूँढता मेरा मन,

हर उम्र में ढूँढता, माँ की गोद को मेरा मन,

क्योंकि आकाश की अन्तहीन सीमा में मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

©  डॉ निधि जैन, पुणे
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments