श्री सदानंद आंबेकर
अब तक झूम रहा था देखो, मारुत संग संग डोल रहा था,
हरष हरष कर बात अनोखी, जाने कैसी बोल रहा था,
चिडियों की चह-चह बोली को, आर्तनाद ने बांट दिया
मानव के अंधे लालच ने एक पेड़ को काट दिया।।
तन कर रहती जो शाखायें, सबसे पहले उनको छाँटा
तेज धार की आरी लेकर, एक एक पत्ते को काटा,
अंत वार तब किया तने पर, चीख मार कर पेड गिरा
तुमको जीवन देते देते, मैं ही क्यों बेमौत मरा।
पर्यावरण भूल कर सबने, युवा पेड का खून किया
मानव के अंधे लालच ने एक पेड़ को काट दिया।।
नहीं बही इक बूंद खून की, दर्द न उभरा सीने में
पूछ रहा है कटा पेड वह, क्या घाटा था जीने में,
तुम्हें चाहिये है विकास तो, उसकी धारा बहने दो
बनती सडकें, बनें भवन पर, हमें चैन से रहने दो।
पत्थर दिल मानव हंस बोला, क्या तुमने है हमें दिया
मानव के अंधे लालच ने एक पेड़ को काट दिया।।
लगा ठहाके, जोर लगाके, मरे पेड़ को उठा लिया
बिजली के आरे पर रखकर, टुकडे टुकडे बना दिया,
कुर्सी, सोफा, मेज बनाये, घर का द्वार बनाया है
मिटा किसी का जीवन तुमने, क्यों संसार सजाया है।
निरपराध का जीवन लेकर, ये कैसा निर्माण किया
मानव के अंधे लालच ने एक पेड़ को काट दिया।।
मौन रो रही आत्मा उसकी, बार बार यह कहती है
धरती तेरे अपराधों को, पता नहीं क्यों सहती है,
नहीं रहेगी हरियाली और, कल कल करती जल की धार
मुश्किल होगा जीवन तेरा, बंद करो ये अत्याचार।
सुंदर विश्व बनाया प्रभु ने, क्यों इसको बरबाद किया
मानव के अंधे लालच ने सब वृक्षों को काट दिया,
मानव के अंधे लालच ने सब वृक्षों को काट दिया।।
© सदानंद आंबेकर
Very valuable and useful piece of information. Combination of words in the form of poetry. It’s fabulous.
बहुत बढ़िया कविता है ।कटते वृक्षों की इस मार्मिक पुकार को सुनने का समय किसके पास है सब अपनी रोटी सेंकने में लगे हैं ।
अद्वतीय
गहन संवेदना को शब्द प्रदान करने में आपका कौशल अद्भुत है, आपकी इस प्रतिभा से ये मेरा नया परिचय है, विश्वास है जल्दी ही कुछ और मर्मस्पर्शी रचनाएं आपकी लेखनी से निकलेंगीं