श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की  एक भावप्रवण कविता  चलो ननिहाल  चलें ।इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

☆ चलो ननिहाल  चलें ☆ 

(ननिहाली दोहे)

दुखती रग पर रख दिया,

फिर से तुमने बान!

अब कैसा ननिहाल औ

कैसी रैन विहान!!

 

वो चौपाल चबूतरा

वो इमली अमराई!

अब भी मन भीतर बसी

नदिया की गहराई!!

 

जंगल में वो टिटहरी

टिहु टिहु ढूंढे गोह!

कबसे पुरानी बात हुईं

गुइयां सखी बिछोह!!

 

अब नाना नानी नहीं

ना मामा के  बोल!

रिश्ते राग अनुराग के

तोल मोल संग झोल!!

 

अनचीन्हीं सी अब लगें

वो गलियां वो शाम!

ना आल्हा उदल कहीं

ना अब सीताराम!!

 

अँसुवन धुंधली आंख हुईं

ले ननिहाल की प्यास!

अब इस जनम में ना मिले

अगले जन्म की आस!!

 

बिटिया ना जायी सखी

फिर फिर आए ख्याल!

बेटी जन्म लेती अंगन

मेरा घर ननिहाल!!

 

नातिन के प्रिय बोलों में

मैं हो जाती निहाल

उसकी मधुर अठखेलियाँ

घर बनता ननिहाल!!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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