श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता बँधी प्रीति की डोर । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 30 ☆
☆ बँधी प्रीति की डोर ☆
भीनी -भीनी खुश्बू ने भरमाया है.
मेरे मन की सांकल को खटकाया है
छेड़ा अपना राग समय ने अलबेला
जीवन की उलझन को फिर उलझाया है.
बँधी प्रीती की डोर, खो गई मैं देखो
प्रीतम ने ऐसा बादल बरसाया है.
पानी का बुलबुला एक जीवन अपना
क़ूर समय से पार न कोई पाया है.
मौन है जिन्दगी भटकती राहों में
देर हो गयी अब न कोई आया है।
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश