श्री मनीष खरे “शायर अवधी”
(ई-अभिव्यक्ति में श्री मनीष खरे “शायर अवधी”जी का हार्दिक स्वागत है। श्री मनीष जी का परिचय उनके ही शब्दों में – “मैंने 300 से अधिक शायरी, गजल, कविताएं लिखीं किन्तु, कभी इस तरह से प्रकाशित करने की कोशिश नहीं की। इस लॉकडाउन में मैंने महसूस किया कि मुझे अपनी इस सोच नुमा चौकोर कमरे से बाहर आना चाहिए और अपनी “अभिव्यक्ति” को अपनी डायरी से बाहर डिजिटल मीडिया में ले जाना चाहिए। मैं ऑटोमोबाइल क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संस्थान में मानव संसाधन टीम का सदस्य हूँ। अपने समग्र कैरियर के दौरान मैं ऐसे कई लोगों से मिला हूँ, जिन्होंने मेरे मस्तिष्क में विभिन्न संवेदनाओं को जगाने का प्रयास किया है और उनके साथ उनकी भावनाओं को जिया है। मेरी सभी रचनाएँ उन सभी को समर्पित हैं जिन्होंने अब तक मेरे जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श किया है।” आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण समसामयिक रचना “आत्मनिर्भरता – मेरा सफर”।)
☆ कविता – आत्मनिर्भरता – मेरा सफर ☆
यूँ गरीबी की चटाई मैं उठाये चल पड़ा हूँ
अपने काँधे पे बिठाये मासूमियत मैं चल पड़ा हूँ
जानता ना मानता मैं सुख की अभिलाषा को रत्ती भर
जीतने खुद से खुद की लड़ाई मैं चल पड़ा हूँ
यूँ गरीबी की चटाई ………
तपतपाती धूप में मखमल समझ इस राह को
गर्म करती ये धधकती हवायें इस सिसकती आह को
बन गया मैं आत्मनिर्भर ये समझ ले आसमां
चल पड़ा हूँ मैं बदलने किस्मत बनी उस स्याह को
मीलों की ये कश्मकश अब पंजो से उधेड़ने चल पड़ा हूँ
अपने काँधे पे बिठाये…….
यूँ गरीबी की चटाई………
क्या था जो जीत मैं ले जा रहा था पिंड को
ख्वाहिशे थी ये मेरी जो आ गया इस राह मैं
बन गया था आशियाना ये शहर सपनो का मेरे
देखता हूँ जब भी मैं मासूम उन निगाहों को
बिखरते सपने ये मेरे बूंदो के भाव में
देखी थी ज़िन्दगी मैंने अपनों को लेकर भविष्य की
हैं खड़े जो संग मेरे हर ख़ुशी हर चाह में
लौट वतन अपने मैं मेरे पिंड में कुछ जमाऊंगा
आत्मनिर्भरता का प्रत्यक्ष प्रमाण सबको दिखलाऊंगा
बिखरते सपनो को फिर से संजोने उठ खड़ा हूँ
यूँ गरीबी की चटाई…..
© श्री मनीष खरे “शायर अवधी”
पुणे, महाराष्ट्र
Superb ?
बहुत सुन्दर
अच्छी रचना
अति उत्तम अभिव्यक्ति… ?