श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक महत्वपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक आलेख “ कला ”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 47 ☆
☆ तुलसी गीता ☆
क्या आप जानते हैं कि हिन्दू तुलसी को देवी माँ का रूप मानते हैं। क्यों? क्योंकि इस दुनिया में कोई भी ऐसी बीमारी नहीं है जिसका अकेले तुलसी द्वारा इलाज नहीं किया जा सकता हो । इसके जीवन देने वाले गुणों के कारण तुलसी को देवी का रूप माना जाता है । इसलिए मैंने तुलसी देवी की प्रार्थना की और उससे अनुरोध किया कि कृपया मुझे अपने औषधिय गुण दें । मैं हर बार माँ तुलसी की ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ जब भी उनसे कुछ पत्तियाँ या उनके बीज माँगता हूँ । किसी से कुछ भी प्राप्त करने का यह तरीका है ।
तब मैंने राम तुलसी या सफेद तुलसी की पाँच पत्तियों और श्यामा तुलसी या काली तुलसी की सात पत्तियों और राम तुलसी के 21 बीजों को तोड़ा । यह संयोजन महत्वपूर्ण है, और फिर पानी में उबालने के बाद मैंने आपको पीने के लिए उस समय दिया जब आपकी इड़ा नाड़ी या शीतल नाड़ी सक्रिय थी, जो गर्म पेय पीते समय सक्रीय होना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है । तुलसी के गुण सामान्य परिस्थितियों में गर्म होते हैं । मुझे ज्ञात है कि तुलसी के पत्तों और बीजों को पानी के साथ उबालकर पीने से एक विशेष ऊर्जा निकलती है जो कफ के नकारात्मक आयनों को बेअसर कर देती हैं, क्योंकि सर्दी, ज़ुखाम के समय शरीर में कफ अधिक उत्पन्न होता है । 45 मिनट के भीतर बुखार सहित आपकी खांसी, ज़ुखाम और ठंड खत्म हो जाएगी ।
तुलसी के उपयोग के कई फायदे और उसकी कई प्रकार की उर्जाएँ हैं कुछ सकल या स्थूल अन्य सूक्ष्म हैं, जो आमतौर पर मनुष्यों के लिए सकारात्मक होती हैं । पौधों और पेड़ों के इन सकारात्मक गुणों के कारण, हम आम तौर पर पेड़ों और पौधों की प्रार्थना करते हैं । कुछ हमारे शरीर के लिए फायदेमंद हैं, दूसरे हमारे मस्तिष्क के लिए, और कुछ आध्यात्मिक प्रगति के लिए, यहाँ तक कि कुछ भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी उपयोगी है । क्या आप जानते हैं कि साँस लेने से हमें शरीर के लिए आवश्यक ऑक्सीजन मिलती है जो शरीर के लिए प्राण का निर्माण करती है । पीपल का वृक्ष, उन कुछ वृक्षों में से एक है जो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ते हैं । अस्थमा, मधुमेह, दस्त, मिर्गी, गैस्ट्रिक समस्याओं, सूजन, संक्रमण, और यौन विकारों के इलाज के लिए पीपल के वृक्ष का उपयोग किया जा सकता है । यह पीलिया के लिए भी बहुत अच्छा है । और आप तुलसी के महत्व को जानते हैं, वह पृथ्वी पर उन कुछ पौधे में से एक है जो प्रजारक या ओजोन भी छोड़ता है ।
हाँ, तुलसी संयंत्र दिन में 20 घंटे ऑक्सीजन और 4 घंटे ओजोन छोड़ता है । और यह चार घंटों की ओजोन ऐसे रूप में आती है, जो पर्यावरण को साफ करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । लेकिन इसे ध्यान में रखें की रविवार को तुलसी द्वारा मुक्त की गयी ओजोन हानिकारक है । इसलिए ही ऐसा कहा जाता है कि रविवार को तुलसी के पौधे को नहीं छूना चाहिए । तुलसी के पौधे को स्वर्ग और पृथ्वी को जोड़ने वाला बिंदु माना जाता है । एक पारंपरिक प्रार्थना बताती है कि निर्माता देवता ब्रह्मा इसकी शाखाओं में रहते हैं, सभी हिंदू तीर्थ इसकी जड़ों में रहते हैं । गंगा इसकी जड़ों में बहती है, इसके तनों और पत्तियों में सभी देवताओं का वास माना जा सकता है । इसकी शाखाओं के ऊपरी भाग में सभी वेदों का वास माना जाता है । इसे घरेलू देवी के रूप में माना जाता है जिसे विशेष रूप से “गृह देवी” भी कहा जाता है । मंगलवार और शुक्रवार को विशेष रूप से तुलसी पूजा के लिए पवित्र माना जाता है । ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है । इस दिन शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह कराकर पुण्यात्मा लोग कन्या दान का फल प्राप्त करते हैं । तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना गया है । तुलसी की नियमित पूजा से हमें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है । तुलसी विवाह की कहानी कुछ इस तरह से है ।
प्राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था । वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था । उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था । जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई । उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया । उन्होंने जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा का स्पर्श किया । वृंदा का पति जलंधर, देवताओं से पराक्रम से युद्ध कर रहा था लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया । जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, जलंधर का सिर उसके आंगन में आ गिरा । जब वृंदा ने यह देखा तो क्रोधित होकर जानना चाहा कि फिर जिसे उसने स्पर्श किया वह कौन है । सामने साक्षात भगवान विष्णु जी खड़े थे । उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, ‘जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी का भी छलपूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लोगे’ यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई । वृंदा के शाप से ही प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें माता सीता से वियोग सहना पड़ा़ । एक और शाप। जिस जगह वृंदा सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ ।
जिस घर में तुलसी होती हैं, वहाँ यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते । गंगा व नर्मदा के जल में स्नान तथा तुलसी का पूजन बराबर माना जाता है । चाहे मनुष्य कितना भी पापी क्यों न हो, मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है । जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं । वो दैत्य जालंधर की भूमि ही आज जलंधर शहर नाम से विख्यात है । सती वृंदा का मंदिर जलंधर शहर के मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है । कहते हैं इस स्थान पर एक प्राचीन गुफ़ा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी । सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं ।
एक अन्य कथा में आरंभ यथावत है लेकिन इस कथा में वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है । अत: तुम पत्थर के बनोगे । यह पत्थर शालिग्राम कहलाया । विष्णु ने कहा, ‘हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूँ लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी । जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी’ बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है । शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है । तुलसी विवाह चार महीने की चतुर्मास काल का अंत होता है, जो मानसून का अंत है और शादी और अन्य अनुष्ठानों के लिए अशुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन भारत में वार्षिक विवाह के मौसम का उद्घाटन हो जाता है । तुलसी पौधे की शाखाओं को उखाड़ फेंकना और कटौती करना प्रतिबंधित है । जब तुलसी का पौधा सूख जाता है तो सूखे पौधे को पानी में विसर्जित किया जाता है, क्योंकि धार्मिक संस्कारों में सूखी हुई तुलसी का उपयोग नहीं किया जाता । हालांकि हिंदू पूजा के लिए तुलसी की पत्तियाँ जरूरी हैं, इसके लिए सख्त नियम हैं । केवल एक पुरुष को ही तुलसी के पत्तों को केवल दिन के उजाले में ही तोडना चाहिए । तुलसी के पत्तों को तोड़ने से पहले माँ तुलसी से क्षमा प्रार्थना भी करनी चाहिए क्योंकि हम उनके शरीर का एक भाग ले रहे हैं ।
दुनिया में कई प्रकार के तुलसी के पौधे उत्पन्न होते हैं लेकिन छः सबसे महत्वपूर्ण हैं जो भारत में पाए जाते हैं । वे य़े हैं :
1) राम तुलसी या सफेद तुलसी : तुलसी की यह किस्म चीन, ब्राजील, पूर्वी नेपाल, साथ ही साथ बंगाल, बिहार चटगांव और भारत के दक्षिणी राज्यों में पाई जाती है । पौधे के सभी हिस्सों में से एक मजबूत सुगंध निकलती है । राम तुलसी की यह सुगंध बहुत ही सुहानी होती है । हथेलियों के बीच में इस तुलसी की पत्तियों को कुचलने से तुलसी की अन्य किस्मों की तुलना में इसमें से एक मजबूत सुगंध निकलती है । तुलसी की इस किस्म का उपयोग कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है ।
2) कृष्णा तुलसी या श्यामा तुलसी : यह किस्म भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में पाई जाती है । इसका उपयोग गले के संक्रमण और श्वसन प्रणाली, खांसी, आतंरिक बुखार, नाक घाव, संक्रमित घाव, कान दर्द, मूत्र संबंधी विकार, त्वचा रोग आदि के इलाज के लिए किया जाता है ।
3) कपूर तुलसी : जहाँ इस तुलसी के पौधों के माध्यम से हवा बहती है, यह आसपास के क्षेत्रों को शुद्ध बनाती है । समृद्ध उद्यान के लिए कपूर तुलसी सबसे अच्छी और पवित्र है । इस तुलसी को समशीतोष्ण मौसम में आत्म-बीज के लिए भी जाना जाता है, जो तुलसी के लिए काफी असामान्य है । यह अनुकूलजन, प्रतिरक्षक क्षमता बढ़ाने वाली, कवक विरोधी और जीवाणु विरोधी है । इस तुलसी का रोजाना एक ताजा पत्ता खाएं, या पत्तियों और फूलों को चुनें और उन्हें सूखाएं और चाय बनाएं ।
4) वन तुलसी : वन तुलसी हिमालय में और भारत के मैदानी इलाकों में पायी जाती हैं, जहाँ यह प्राकृतिक पौधे के रूप में बढ़ती है । वन तुलसी की खेती भी की जाती है और यह पूरे एशिया और अफ्रीका के जंगलों में अपने आप ही बढ़ती रहती है ।
5) नींबू तुलसी : इसमें नींबू की तरह सुगंध आती है ।
6) पुदीना तुलसी : इसमें से पुदीना की तरह सुगंध आती है ।
सामान्य लोगों को इन छह प्रकार के तुलसी के विषय में पता है, लेकिन एक बहुत ही दुर्लभ तुलसी भी होती हैं, जिनके विषय में बहुत ही कम लोग जानते हैं । जिसे ‘लक्ष्मी तुलसी’ कहा जाता है।
© आशीष कुमार
नई दिल्ली