सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “ वो चीखें ”। यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है से उद्धृत है। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 40 ☆
सुनो,
औरतों की यह गूँजती चीखें
मुझसे बर्दाश्त नहीं होतीं-
भेद जाती हैं मेरे कानों को,
टुकड़े कर देती हैं मेरे ज़हन के
और मुझे हिला जाती हैं!
मेरे देश में
जहां देवियाँ पूजी जाती हैं,
वहीँ आजन्म कन्याओं को
कोख में ही मार दिया जाता है;
जब दम तोड़ते हुए
वो लडकियां चीखती हैं ना-
मेरे दिल का एक कोना
सुन्न हो जाता है!
आज भी मेरे देश में
दहेज़ के नाम पर
एक बेचारा पिता
सब कुछ गिरवी रख देता है,
अपना घर, अपना खेत, अपनी इज्ज़त;
पर फिर भी जलाई जाती हैं
उनकी बेटियाँ…
जब कोई बेटी इस तरह
अपने प्राण त्यागते वक़्त चीखती है ना-
तड़प उठता है मेरा मन!
अभी कुछ दिन पहले
बड़ा हल्ला मचा था
जब दामिनी का बलात्कार कर
उसे निर्दयता से मार दिया गया था-
कहाँ बंद हुई है अभी भी
वो निष्ठुरता?
अब भी लडकियां और औरतें
हैवानियत का शिकार बनती ही रहती हैं
और जब वो चीखती हैं न-
एक खामोशी मेरे ज़हन को घेर लेती है!
सुनो,
इन औरतों से कह दो ना
वो चुप रहा करें-
न बोला करें कुछ भी,
सब कुछ सह लिया करें
और चीखा तो बिलकुल न करें…
मेरा दम घुटता है!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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मार्मिक रचना
स्त्री वेदना को अभिव्यक्ति प्रदान करती हुई यह कविता बेहद ही मार्मिक बन पड़ी है। हार्दिक साधुवाद
-शिव सागर शाह, नई दिल्ली
dil ko jhajhkorne wali rachna