श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम कविता “जन्म जन्म की प्रीत निभाने……..”। भारत में वैवाहिक बंधन की रस्में अविस्मरणीय तो होती ही हैं साथ ही एक एक पल भी अविस्मरणीय होता है जिसके एक अंश को श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने इस शब्दचित्र के माध्यम से बखूबी लिपिबद्ध किया है। इस सर्वोत्कृष्ट रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 49 ☆
☆ कविता – जन्म जन्म की प्रीत निभाने …….. ☆
पांव की सुंदरता देख
लग गई दिल पर हाजिरी
लाल लाल मेहंदी सजी
पहने राजस्थानी मोजरी
नूपुर की सुंदरता धामे
झूलन मोतियों की लगी
पांवों की सुंदरता सोच
मुख देखन की आस लगी
थम थम जब चलेगी गोरी
खन खन खनकेगा कंगना
सुर ताल छेड़ती नूपुर भी
जाएगी पिया के अंगना
सिर सिंदूरी लाल लगाई
हाथों लाली लाली सजाई
घूंघट की ओर से दिखे
सुर्ख लाल होठों की लाली
देख लाल जोडे पर दुल्हन
साजन भी लजाए लाल
जनम जनम साथ निभाने
मांथे तिलक लगाए लाल
प्रकृति की सुंदर रचना
मेंहदी ने दिखाया अपना रंग
जन्म जन्म की प्रीत निभाने
सात फेरे लिए दोनों संग संग
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
अच्छी रचना