श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् ।

तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् ।।7।।

रज गुण करता राग का भाव सहज उत्पन्न

तृष्णा औं आस वित्त को करता है सम्पन्न।।7।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! रागरूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को कर्मों और उनके फल के सम्बन्ध में बाँधता है।।7।।

 

Know thou  Rajas  to  be  of  the  nature  of  passion,  the  source  of  thirst  (for  sensual enjoyment) and attachment; it binds fast, O Arjuna, the embodied one by attachment to action!।।7।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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