`डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तंत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं। अब आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित एक समसामयिक एवं सकारात्मक आलेख  पर्यावरण और हमारे दायित्व।)

☆ किसलय की कलम से # 7 ☆

☆ पर्यावरण और हमारे दायित्व ☆

(जैव विविधता के हानि-लाभ)

पर्यावरण अर्थात वह आवरण अथवा घेरा जो हमारे चारों ओर विद्यमान हो, जिसके आँचल में रहकर हम जीवन जी रहे हैं। इसके असंतुलन से जीवजगत संकटग्रस्त होता जा रहा है। मानव जीवन का पर्यावरण से सबसे निकट का संबंध है। इसके विकास, संवर्धन व संरक्षण की महती आवश्यकता है। पर्यावरण के प्रति जनजागृति व इसके क्षरण को रोकने संबंधी प्रयासों को मूर्तरूप देना पर्यावरण दिवस का प्रमुख उद्देश्य है। आज का जीवन पृथ्वी पर लगभग चार अरब साल के जैव विविधता का परिणाम है। लगभग दस करोड़ साल पूर्व से जीवन की विकास यात्रा कुछ तेज हुई लेकिन अब मनुष्यों के कारण पर्यावरण का इतना अधिक क्षरण हो रहा है कि अगले सौ वर्ष के भीतर इस पृथ्वी ग्रह की प्रजातियाँ सबसे अधिक संख्या में विलुप्त हो जाएँगी।

पर्यावरण के अंतर्गत जल, वायु, भूमि एवं इनसे संबंधित चीजें, जीव-जंतु, सूक्ष्म जीव व पेड़-पौधे आते हैं। मनुष्य एवं पर्यावरण के बीच पारस्परिक संबंधों के अध्ययन से जीव परस्पर तथा पर्यावरण के साथ किस तरह व्यवहार करते हैं। वह सब कुछ ज्ञात करने हेतु जीव विज्ञान की पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) शाखा का सहारा लिया जाता है।

पर्यावरण में असंतुलन का सीधा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। इसमें प्रकृति तथा मानव दोनों ही उत्तरदायी होते हैं। मानव द्वारा धरा पर किए जा रहे सतत निर्माणों से वनस्पतियों पर प्रभाव पड़ रहा है, जिनसे लाभकारी वनस्पतियों की कमी हो रही है। वहीं हमने यह भी पाया है कि हम जिन वनस्पतियों को पूर्णरूपेण अनुपयोगी मानकर छोड़ देते हैं, वे वनस्पतियाँ या पौधे लगातार अपना फैलाव करते रहते हैं। यही बात जीव-जंतुओं के फैलाव अथवा कमी आने पर भी होती है। यह वृद्धि अथवा ह्रास मानव के हितकारी वह हानिकारक दोनों हो सकते हैं। मानव की अनेक गतिविधियों से विषाक्त औद्योगिक कचरा नदियों को प्रदूषित करता है। जंगलों के कटने से वन्य प्राणियों के रहने के स्थान कम हो रहे हैं। जल, हवा व अनेक खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी है। हम सभी जानते हैं कि हमें प्रकृति से भोजन, औद्योगिक कच्चा माल, औषधियाँ, प्रकाश संश्लेषण द्वारा उत्पन्न ऑक्सीजन, जल संरक्षण, मृदा संरक्षण आदि का लाभ पूर्व से ही मिल रहा है। प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से पशु-पक्षी और जंगली जीवों का पलायन होता है अथवा वे मर जाते हैं। अनेक घातक जानवर आवासीय क्षेत्रों में जन-धन की हानि पहुँचाते हैं। गाजर घास की अधिकता फसलों को नुकसान पहुँचाती है। खरगोश, चूहे, टिड्डी, दीमक, मच्छर आदि की बेपनाह वृद्धि भी हमें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुँचाती है।

बढ़ती जनसंख्या, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि का भी वनस्पतियों और जीवों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पशु-पक्षियों में रुचि रखने वाले लोग, जैव विविधता से प्रेरित गीत, संगीत, चित्रकारी, लेखन सांस्कृतिक दृश्य, बागवानी जैसे कार्य भी पर्यावरण संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। पिछली शताब्दी से हो रहे जैव विविधता के दुष्परिणामों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि मानव पर्यावरण क्षरण हेतु स्वयं उत्तरदायी है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बतलाई जा रहीं जानकारियाँ, लाभ-हानि व जागरूकता हेतु किए  जा रहे प्रयासों को अधिकांश लोग बिल्कुल भी अहमियत नहीं देते, न ही अपना उत्तरदायित्व समझते। हमें यह भी दिखाई दे रहा है कि हम उनसे उत्पन्न कठिनाईयों का सामना भी करने लगे हैं, परंतु अपेक्षानुरूप पर्यावरण संरक्षण के वे सारे कार्य अभी भी नजर नहीं आते जो वर्तमान में किये जाना चाहिए।

आज हमें आवश्यकता है वृक्षारोपण की। खास तौर पर शहरी क्षेत्रों में आवासीय मकानों के मध्य खाली स्थानों में वृक्षारोपण की। होना तो यह चाहिए कि दोनों आवासों के बीच कम से कम 10 से 20% स्थानों में वृक्षारोपण के शासकीय निर्देश हों। नदियों व जलाशयों में प्रदूषण फैलाना पूर्णतः वर्जित हो। औद्योगिक विषैले अपशिष्ट तथा जहरीले धुएँ से बचने के पुख्ता इंतजाम हों। प्रकृति की वनस्पतियों व जीवों में आदर्श संतुलन हेतु अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का अनुकरण किया जाए। मानव को प्रकृति के निकट रहने के बहुआयामी स्रोत ढूँढे व बनाये जाएँ। बिना रासायनिक व कृत्रिमता वाले खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जाए।

यदि हम उपरोक्त कार्यों से स्वस्फूर्त भाव से आगे आएँगे तो निश्चित रूप से हम पारिस्थितिकी तथा पर्यावरण संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकेंगे। यही आज इक्कीसवीं सदी की चुनौती है, जो बिना संकल्प के संभव नहीं है। इसीलिए आईये, आज से ही हम संकल्पित होकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रयास करना शुरू कर दें।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

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subedar pandey kavi atmanand

सारगर्भित लेख आदरणीय लेखक को बधाई अभिनंदन अभिवादन

Dr. R. K. Thakur

प्रेरक, रोचक, अनुकरणीय, ग्राह्य, समयानुकूल, प्रासंगिक, सम-सामयिक, उपादेय, ज्ञानवर्धक आलेख
(डॉ. राजेश ठाकुर, नैनपुर)

Vijay Tiwari Kislay

आदरणीय श्री बावनकर जी,
नमस्कार
इस बहुचर्चित व विख्यात पत्रिका में मैं अपना लेख देखकर स्वम् को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ।
– किसलय