डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है एक विचारणीय भावप्रवण कविता हम बारिश बन जाएं….। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 56 ☆
☆ हम बारिश बन जाएं…. ☆
आओ!
हम बारिश बन जाएं
धरकर रूप बादलों का
फिर समूचे अंबर में छा जाएं।
सूरज से, आशीषें लेकर
पवन देव से हाथ मिलाएं
मौसम से मनुहार,प्यार से
मैत्री भाव, आश्वस्ति पाएं,
जल के स्वामी वरुण देवता
से फिर अपनी प्रीत बढ़ाएं।
आओ हम बारिश बन जाएं।।
बरसें, पहले जहाँ प्यास है
जल बिन जनजीवन उदास है
पक्षपात से पीड़ित अब तक
पहुंचें, उनके आसपास है,
जहां पड़ा सूखा अकाल है
वहाँ हवा हमको पहुंचाए।
आओ हम बारिश बन जाएं।।
नहीं बाढ़ ना अतिवृष्टि हो
बंटवारे में सम दृष्टि हो
नहीं शिकायत रहे किसी को
आनंदित यह सकल सृष्टि हो,
वन उपवन फसलें सब सरसे
हरसे धरा तृप्त हो जाए।
आओ हम बारिश बन जाएं।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
07/06/2020
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
अच्छी रचना