श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
पुरूषोत्तम योग
(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)
(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ।।17।।
उत्तम पुरूष तो एक है इन दोनो से भिन्न
वह पालक परमात्मा, सदा प्रसन्न अखिन्न ।।17।।
भावार्थ : इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा- इस प्रकार कहा गया है।।17।।
But distinct is the Supreme Purusha called the highest Self, the indestructible Lord who, pervading the three worlds, sustains them.।।17।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
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