डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आज प्रस्तुत है श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर विशेष कविता “तुम कहाँ छिपे हो मोहन….”। )
☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष – तुम कहाँ छिपे हो मोहन…. ☆
गीता के रचनाकार कृष्ण,
हे दीनन के रखवाले
तुम कहाँ छिपे हो मोहन
प्यारे चक्र सुदर्शन वाले।
कितने ही लाक्षाग्रह धधके हैं,
पुनः इसी धरती पर
भीषण लपटों में जले जा रहे,
जलचर-थलचर-नभचर,
कौरव दल विध्वंसक बन कर
घेरा डाले चहुँ ओर खड़े
क्या और अभी भी खाली
इनके कुकर्मों के पाप घड़े,
है विदुर कहाँ जो गुप्त सुरंग से,
हमको आज निकाले
तुम कहाँ छिपे हो मोहन……
निशदिन कितनी ही द्रोपदियों
के चीर हरण होते हैं
जूएं में राजनीति के पांडव
लगा रहे गोते हैं
जिसका खा रहे नमक, विरुद्ध
उसके ही कैसे बोलें
है नेत्र बंद गुरु द्रोण-भीष्म के
उनको कैसे खोलें,
है सचराचर दृष्टा!
इन ललनाओं की लाज बचा ले
तुम कहाँ छिपे हो मोहन……..
लावे की भांति असुर दलों के
निर्दय हाथ बढ़े हैं
इस पुनीत हिन्द-भूमि पर
दुष्कृत्यों के अंक चढ़े हैं,
शंकित मन, व्याकुल डरे हुए
गोकुल के ग्वाले-गौवें
कोयल बैठी गुमसुम
कर्कश स्वर गीत गा रहे कौवे,
दुष्टों का मद मर्दन कर प्रभु,
भक्तों की लाज बचा ले
तुम कहाँ छिपे हो मोहन…….
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
07/06/2020
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014