श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आज प्रस्तुत है एक प्रासंगिक व्यंग्य कविता “परिवर्तन”। )
☆ व्यंग्य कविता – परिवर्तन ☆
स्वाधीनता के पावन पर्व पर
अपनी संपन्नता पर गर्व कर
कुर्ता धारी नेता ने
कार में बैठते हुए
शान से अपनी
गर्दन ऐंठते हुए
कार चालक से कहा-
क्यों भाई ?
हमने इस देश को
कितना आगे बढ़ाया है
गरीबों का जीवन स्तर
कितना ऊपर उठाया है
अपना खून पानी की
तरह बहाकर
इस देश में,
कितना परिवर्तन लाया है
कार चालक ने
अल्प बुद्धि से
कुछ सोचते हुए
फटी कमीज़ से माथे का
पसीना पोंछते हुए कहा-
नेताजी,हम तो बस
इसी सत्य को मानते हैं
हम तो बस
इसी परिवर्तन को जानते है
कि-
आज से साठ साल पहले
आप के पूज्यनीय पिताजी
आज ही के दिन
तिरंगा झंडा फहराया
करते थे
और हमारे पिताजी
उन्हें वहां पहुंचाया करते थे
और आज साठ साल बाद
आप झंडा फहराने जा रहें है
और हम आपको
वहां तक पहुंचा रहे हैं
© श्याम खापर्डे
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