श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपके अतिसुन्दर कुछ दोहे…. । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 59 ☆
☆ एक बाल कविता – कुछ दोहे…. ☆
तप्त धरा शीतल हुई, खिली खिली सुप्रभात।
जड़-चेतन,जन हर्ष मय, शुभागमन बरसात।।
झिरमिर झिरमिर सावनी, पावस प्रीत फुहार।
हुलस-हुलस उफना रहा, मन में संचित प्यार।।
निर्मल मन की वाटिका, सौरभ पवन प्रवाह।
अंतस को पावन करे, भरे उमंग उछाह।।
ईर्ष्यालु दंभी मनुज, रचते सदा कुचक्र।
सीधे पथ पर भी चले, सांपों जैसे वक्र।।
मुफ्तखोर ललचाउ के, मन में ऊंची चाह।
छल, प्रपंच, पांसे चले, पकड़े उल्टी राह।।
सावन के झूले कहाँ, कहाँ आम के पेड़।
बचपन बस्ते से निकल, सीधे हुआ अधेड़।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈