प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( श्री गणेश चतुर्थी पर्व के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की बचपन की यादों से परिपूर्ण कविता यहाँ यादें बचपन की। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 6 ☆
☆ यहाँ यादें बचपन की ☆
आता है याद मुझको बचपन का घर वो प्यारा
अपनो के साथ मैने जीवन जहाँ गुजारा
खुशियों के साथ बीता जहॉ बालपन बिना भय
नहीं थी न कोई चिन्ता न ही कोई जय पराजय
घर वह कि पूर्वजो ने जिसे था कभी बनाया
जिसने मुझे बढ़ाया दे अपनी स्नेह छाया
आँगन था जिसका सुदंर औं बाग वह सुहाना
मैने जहाँ सुना नित चिड़ियों का चहचहाना
फूलों की छवि निरख खिंच तितलियाँ जहाँ आती
जो मेरे बालमन को बेहद रही लुभाती
जिनको पकड़ने गुपचुप हम बार बार जाते
पर कोशिशें भी कर कई उनको पकड़ न पाते
कैसा था मस्त मोहक बचपन का वह जमाना
कभी बेफिकर थिरकना कभी साथ मिल के गाना
कभी गिल्ली डण्डा गोली लट्टू कभी घुमाना
कभी छत पै चढ़ के चुपके ऊँचे पंतग उड़ाना
कभी साथियो के संग मिल कुछ पढना या पढाना
कभी घूमने को जाना या सायकिल चलाना
नजरों मे बसी हुई है माँ नर्मदा की धारा
सब घाट और मंदिर पावन हरा किनारा
स्कूल, क्लास, शिक्षक, बस्ती, गली बाजारें
पिताजी की शुभ सिखावन माँ की मधुर पुकारे
ताजी है अब भी मन मे सारी पुरानी बातें
खुशियों भरे मनोहर सुबह शाम दिन औं रातें
बदलाव ने समय के दुनियां बदल दी सारी
दुनियाँ के संग बदल गई सब जिंदगी हमारी
पर चित्त मे बसे है अब भी मधुर वे गाने
होकर भी जो पुराने नये से हैं क्यों न जाने
एकान्त में उभरता अब भी वो सौम्य सपना
जिससे अधिक सुहाना लगता न कोई अपना
ले आई खींच आगे बरसो समय की दूरी
लगता है मन की सारी इच्छाएं हुई न पूरी
आते हैं पर कभी क्या वे दिन जो बीत जाते
बस याद बन ही मन को रहते सदा रिझाते
जिनसे भरी रसीली सुखदायी शांति सारी
हर व्यक्ति के लिये है जीवन की निधि जो प्यारी
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बचपन की स्मृतियों से सजी, बचपन की यादों के झरोखे खोलती अच्छी रचना रचना कार को बधाइ अभिनंदन अभिवादन मंगलसुप्रभात