श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय १७
(श्रद्धा का और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय)
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः ।।5।।
कामी, दम्भी, राग, बल अन्वित जो भी लोग
करते शास्त्र विरूद्ध विधि यजन, भजन व योग ।।5।।
भावार्थ : जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मनःकल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त हैं ।।5।।
Those men who practise terrific austerities not enjoined by the scriptures, given to hypocrisy and egoism, impelled by the force of lust and attachment. ।।5।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈