हेमन्त बावनकर
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। आज प्रस्तुत है एक कविता “ उड़ान ”। यह कविता एक माँ की दृष्टी में बच्चे के जन्म के पश्चात नन्हें बच्चे के कोमल हृदय की जिज्ञासाएँ और भविष्य की कल्पना की काव्यभिव्यक्ति है। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिये और पसंद आये तो मित्रों से शेयर भी कीजियेगा । अच्छा लगेगा। यह कविता मेरी नै ई- बुक ” तो कुछ कहूँ ” से उद्धृत है। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 24 ☆
☆ उड़ान ☆
वो देखो
कितना सुंदर
कितना प्यारा
नीला आसमान है।
उतने ही सुंदर
पेड़ों पर कलरव करते पक्षी
उतने ही प्यारे
इस धरती पर इंसान हैं।
देखती हूँ प्रतिदिन
कौतूहल
तुम्हारी अबोध आँखों में।
जानती हूँ
तुम्हें लगता है प्रत्येक दिन
यह संसार
जीवन के विभिन्न रंगों से भरे
जादुई बक्से की तरह।
माँ हूँ तुम्हारी
अतः
पढ़ सकती हूँ
मन तुम्हारा
और
आँखें तुम्हारी।
मैं बताऊँगी
वह सब कुछ
जो जानने को आतुर हो तुम
कुछ तुम्हारी तोतली भाषा में
और
कुछ संकेतों में
कि –
कितने सुंदर हैं
आसमान पर उड़ते पक्षी
रंग-बिरंगे फूलों से भरे बाग
उन पर मँडराते भौंरे
और रंग-बिरंगे पंखों वाली तितलियाँ।
पड़ोस की प्यारी पालतू बिल्ली
और प्यारा पालतू कुत्ता।
ऊंचे-ऊंचे पहाड़
उनसे गिरते झरने
खेतों और शहरों के बीच से बहती नदी
और अथाह नीला समुद्र।
पुराने महल-किले
सुंदर गाँव-शहर
और देश-परदेश।
इन सबसे तुम प्रेम करना।
पार्क में बहुत सारे
बच्चे खेलते हैं प्यारे
काले या गोरे
किसी के बाल काले होंगे
किसी के भूरे
कोई नमाज़ पढ़ते हैं
कोई करते हैं प्रार्थना
किन्तु,
तुम करना उन सबसे
अपना मन साझा।
क्यूंकि बच्चे
बच्चे होते हैं
मन के सच्चे होते हैं
इन सबसे तुम प्रेम करना।
सारी अच्छी प्यारी बाते
पिता तुम्हें बताएँगे
रोज शाम को काम से आकर
नए खिलौने लाएँगे
नए खेल खिलाएँगे
कहानियाँ नई सुनाएँगे।
दादा-दादी और नाना-नानी
की आँखों के तारे हो।
सबके दुलारे
सबके प्यारे
कल के चाँद-सितारे हो।
अपने कर्म-श्रम से
तुम्हें यहाँ तक लाये हैं।
दूर करेंगे जीवन के
जितने भी अंधकार के साये हैं।
कठिन परिश्रम करके तुमको
सारे विश्व में
अपनी पहचान बनाना है।
नया मुकाम बनाना है।
नया संसार बनाना है।
© हेमन्त बावनकर, पुणे
28 जुलाई 2008
माॅ और बच्चे के बीच जो अबोल संवाद है उसे आप ने सही तरह से शब्दबद्ध किया है/ हरएक माॅ का यही सपना होता है की उसका बच्चा सच्चा आदमी बने/यह कविता में आप ने जीन भावनाओंको व्यक्त किया है,उसे पढनेके बाद मुझे सुप्रसिद्ध मराठी बालसाहित्यकार तथा समाजसेवक पूज्य साने गुरुजी के विचार याद आते है/इसीमें कविता का यश है/
Thanks sir