श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक और कालजयी रचना हम जड़ें हैं…..…..…. । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 61 ☆
☆ हम जड़ें हैं….. ☆
हम जड़ें हैं
फूल फल यदि चाहते हो
सींचते रहना पड़ेगा,
याद रखना,
हम प्रकृति से हैं जुड़े
हमसे तुम्हें जुड़ना पड़ेगा,
ये मुखोटे
ये कृत्रिम से मास्क
सांसें शुद्ध कब तक ले सकोगे
एक दिन थक-हार
कर फिर से यहीं पर
लौटना वापस पड़ेगा।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈