श्री अमरेंद्र नारायण
(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की राष्ट्रकवि दिनकर जी की स्मृति में एक भावप्रवण कविता ओ राष्ट्रकवि, हुँकार भरो )
☆ राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति विशेष – ओ राष्ट्रकवि, हुँकार भरो ☆
ओ राष्ट्रकवि, बुझती जाती चिनगारी है
हुँकार भरो, अब तो हुँकार की बारी है
अब सात नहीं,साठोत्तर पन्ने उलट गए
समर शेष ही नहीं, जटिल होता जाता
जाने कब की मिट गयी आस शुभ उस दिन की
अब गहन निराशा से जन मानस भर जाता
जो सपना देखा था माता के बेटों ने
वह सपना ही रह गया देश के नयनों में
आदर्शों के पौधे तो कब के सूख गए
उनकी परिभाषा उड़ी समय के डैनों में
अपनी चिंता में लिप्त, व्यस्त सम्पूर्ण तंत्र
आगे बढ़ कर हम किसको दोषी ठहराएँ?
परिवेश समूचा निरुत्साह कहीं पर बेबस
किस से मंदिर की दीपशिखा हम जलवायें ?
क्या होगा उन बुझती आँखों के सपनों का
क्या होगा शैशव के खिलते उन फूलों का?
क्या होगा उन सूखी जाती धाराओं का?
क्या होगा उन विश्वास -आस के कूलों का?
यहाँ भूख गरीबी ख़त्म नहीं है हो पाई
राष्ट्र द्रोही उन्मुक्त रम्भाते चलते हैं
जिन हाथों में पतवार देश की नौका की
रत्नाकर का वे कोष खुरचते रहते हैं
कोई संचय में है दिवस और निशि लिप्त ,व्यस्त
कोई लूट रहा है राष्ट्र -सम्पदा मुक्त हस्त
सीधे सच्चे सब देख रहे होकर तटस्थ
सहते जाते चुप-चाप और भयभीत त्रस्त
ओ राष्ट्रकवि तुमने तो कहा था उसी समय
है समर शेष, अब फिर उसको दुहराओ हे
जो हैं तटस्थ उनका अपराध करो निश्चित
हुंकार करो, हुंकार ज्योति बरसाओ हे
वह ज्योति जो अब भूख गरीबी दूर करे
वह ज्योति जो तोड़े रूढ़ि की जंजीरें
वह ज्योति जो लाये समाज में समरसता
ज्योति जो खींचे नव भारत की तस्वीरें
अब भी अगाध शक्ति है भारत के उर में
जागे तो वह स्वर्णिम विहान ला सकती है
संकल्प अगर दृढ़ हो तो नभ से खींच -खींच
गंगा की धारा अवनी तक ला सकती है
इसलिए चुनौती दो भारत की मूर्छा को
आलस्य और इस हीन भाव को फटकारो
फिर एक बार हुंकार भरो प्यारे कविवर
सोई उर्जा को राष्ट्रकवि फिर ललकारो !
© श्री अमरेन्द्र नारायण
२७ अगस्त २०२०
शुभा आशर्वाद, १०५५ रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स,जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश
दूरभाष ९४२५८०७२००,ई मेल amarnar @gmail.com
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈