व्यंग्य की नई पुस्तक चर्चा में
कृति – समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य
लेखक – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी को उनकी नई पुस्तक “समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य” के प्रकाशन के ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से हार्दिक बधाई। यह नई पुस्तक चर्चा में है, और चर्चाकार हैं व्यंग्य जगत की सुप्रसिद्ध हस्तियां। प्रस्तुत हैं प्रसिद्ध व्यंग्यकारों के बेबाक विचार –
☆ पुस्तक चर्चा ☆ समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य – पुस्तक चर्चा में ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
1 सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री मुकेश राठौर लिखते हैं
इधर जो मैंने पढ़ा क्रम में आज प्रस्तुत संस्कारधानी जबलपुर के ख्यात व्यंग्यकार श्री विवेक रंजन जी श्रीवास्तव के सद्य:प्रकाशित व्यंग्य संग्रह समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य को आज पढ़ने का अवसर मिला। जैसा कि भूमिका में ही पद्मश्री व्यंग्यकार आदरणीय डॉ ज्ञान चतुर्वेदी जी ने बताया कि श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर है। विज्ञान, तकनीकी का छात्र किसी भी विषय पर सुव्यवस्थित, सुसंगठित और क्रमबद्ध तरीके से अपनी बात रखता है। प्रस्तुत संग्रह में यह तथ्य उभरकर आया है। सीमित आकार की रचनाओं में विवेक जी ने सुव्यवस्थित रूप से अपना बात रखी है। संग्रह की प्रथम दो शुभारंभ रचनाओं – मास्क का घूंघट, हैंडवाश की मेहंदी के साथ मेड की वापसी और जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहियो, रोचक शीर्षकों के साथ पति-पत्नी और घरेलू खींचतान को हल्के से प्लेट कर विकेट पर जमते दिखे हैं। तीसरी रचना ‘शर्म तुम जहां कहीं भी हो लौट आओ’ से मानो खुल गए। कहीं शर्म मिले तो इत्तला कीजियेगा! बेशर्म पीढ़ी के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा है। फॉर्मेट करना पड़ेगा वायरस वाला 2020, सहित विभिन्न रचनाएं कोरोना त्रासदी की उपज है, जिसमें बदली जीवनशैली पर व्यंग्यकार ने अपना दृष्टिकोण स्प्ष्ट किया है। भगवान सत्यनारायण कथा के पैटर्न पर बुनी गई चुनावकथा के पांचों अध्याय रोचक हैं। संग्रह की शीर्षक रचना ‘समस्या का पंजीकरण‘ सरकारों द्वारा जनता की समस्याओं के थोकबंद निदान के लिए लगाए जाने वाले शिविर और मौसमी एकल खिड़की खोलने जैसे लोक लुभावन चोचलों की ग्राउंड रिपोर्ट है।
संग्रह की सभी 33 रचनायें पठनीय है। व्यंग्यकार ने बोलचाल के शब्दों के बीच उर्दू और अंग्रेजी भाषा के तकनीकी शब्दों को खूबसूरती से प्रयोग किया है। भाषा सरल, प्रवाहमान है जो पाठक को बहाते लिए जाती है। रचनाओं में यत्र-तत्र तर्कपूर्ण ‘पंच’ देखे जा सकते हैं। रचनाओं के शीर्षक बरबस ध्यान खींचते हैं यथा- ‘बगदादी की मौत का अंडरवियर कन्फर्मेशन’, मास्क का घूंघट..आदि। विवेकजी ने अपनी रचनाओं में पति, पत्नी और वो से लेकर पथभ्रष्ट युवा पीढ़ी, पाश्चात्य संस्कृति के अनुरागी, कामचोर बाबू, भ्रष्ट नेता और सरकार की नीतियों को भी लपेटा है। आंकड़ेबाजी, नया भारत सरीखी रचनाएं सरकार के न्यू इंडिया, स्मार्ट इंडिया की पोल खोलती है । जब व्यंग्यकार कहता है कि नाम के साथ ‘नया’ उपसर्ग लगा देने से सब कुछ नया-नया सा हो जाता है। वहीं ख़ास पहचान थी, गाड़ी की लाल बत्ती रचना में लेखक ने लाल बत्ती के शौकीन बत्तीबाजों को धांसू पंच दे मारा यह कहकर कि- जिस तरह मंदिर पर फहराती लाल ध्वजा देखकर भक्तों को मां का आशीष मिल जाता है, उसी तरह सायरन बजाती लाल बत्ती वाली गाड़ियों का काफ़िला देखकर जनता की जान में जान आ जाती है।
विभिन्न विषयों पर लिखे गए व्यंग्यलेखों से सजी यह पुस्तक पाठकों को ज़रूर पसन्द आएगी। एक कमी यह ख़ली की संग्रह का नाम केवल समस्या का पंजीकरण होना था । दूजी कमी यह कि कोरोना को केंद्र में रखकर लिखी गई रचनाओं की अधिकता सी है। हालांकि वे सभी एक न होकर अलग दृष्टिकोण से लिखी गई हैं। एक अच्छा व्यंग्य संग्रह पाठकों को उपलब्ध करवाने हेतु श्री श्रीवास्तव जी को बधाई।
2 वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शशांक दुबे जी लिखते हैं
विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारण विवेकजी के पास चीजों को सूक्ष्मतापूर्वक देखने की दृष्टि भी है और बगैर लाग-लपेट के अपनी बात कहने की शैली भी। विवेकजी के इस संकलन की अधिकांश रचनाएँ नई हैं, कुछ तो कोरोना काल की भी हैं। संकलन की शीर्ष रचना ‘समस्या का पंजीकरण’ संवेदनाहीन व्यवस्था में आम आदमी की दुर्दशा पर बहुत अच्छा प्रहार करती है। ‘बसंत और बसंती’ में उन्होंने स्त्री के पंख फैलते ही पोंगापंथियों द्वारा त्यौरियां चढ़ा लेने की मानसिकता पर सांकेतिक तंज कसा है। आज यह संकलन हाथ में आया है। इसे पूरा पढ़ना निश्चित ही दिलचस्प अनुभव होगा। विवेक भाई को बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।
3 उज्जैन से व्यंग्यकर्मी श्री हरीशकुमार सिंह का कहना है कि
प्रख्यात व्यंग्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव का नया व्यंग्य संकलन हाल ही में प्रकाशित हुआ है ‘समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य’। इसे इंडिया नेटबुक्स ने प्रकाशित किया है। संकलन नया इसलिए भी है कि इसमें व्यंग्य के बिषयों में समकालीनता का बोध है और कुल 35 व्यंग्य में से कई व्यंग्यों में कोरोना काल और लॉकडाउन से उपजी सामाजिक विसंगतियों, कोरोना का भय और उतपन्न अन्य विषमताओं को व्यंग्य में बखूबी उकेरा गया है। लॉक डाउन में पहले काम वाली बाइयों को छुट्टी पर सहर्ष भेज देना और फिर घर के कामों में खपने पर, मेड की याद आने को लेकर, पूरे देश की महिलाओं का मान लेखक ने रखा। व्यंग्य ‘शर्म तुम जहाँ कहीं भी हो लौट आओ’ रंजन जी के श्रेष्ठ व्यंग्यों में से एक है क्योंकि शर्म किसी को आती नहीं, घर से लेकर संसद तक और इसलिए शर्म की गुमशुदगी की रपट वो थाने में लिखाना चाहते हैं। सत्यनारायण जी की कथा के समान उनका व्यंग्य है अथ श्री चुनाव कथा, जिसमें पांच अध्यायों में चुनाव के पंच प्रपंच की रोचक कथा है। व्यंग्य ‘किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन’ में आज के भारत के आम आदमी की व्यथा है कि उसे राजनीति ने सिर्फ दाल रोटी में उलझा दिया है और विचार करने का नहीं। संग्रह के व्यंग्य में लगभग सभी विषयों पर कटाक्ष है।एक सौ सात पृष्ठ के इस व्यंग्य संग्रह के अधिकांश व्यंग्य रोचक हैं और लगभग समाज में घट रही घटनाओं पर लेखक की सूक्ष्म दृष्टि अपने लिए विषय खोज लेती है।
विवेक जी भारी भरकम व्यंग्यकार हैं क्योंकि संकलन की भूमिका ज्ञान चतुर्वेदी जी, बी एल आच्छा जी और फ्लैप पर आदरणीय प्रेम जनमेजय जी, आलोक पुराणिक जी और गिरीश पंकज जी की सम्मतियाँ हैं।
(इसके पहले इतनी भूमिकाओं से भोपाल के व्यंग्यकार बिजी श्रीवास्तव का संग्रह इत्ती सी बात लबरेज था। खैर यह तो मजाक की बात हुई । अलबत्ता कई व्यंग्यकार एक भूमिका के लिए तरस जाते हैं।)
बहरहाल यह विवेक जी की स्वीकार्यता और लोकप्रियता का भी प्रमाण है। बधाइयाँ।
4 बहुचर्चित व्यंग्य शिल्पी लालित्य ललित की लेखनी से
विवेक रंजन श्रीवास्तव बेहतरीन व्यंग्यकार है इसलिए नहीं कह रहा कि यह व्यंग्य संग्रह मुझे समर्पित किया गया है।अपितु कहना चाहूंगा कि व्यंग्य तो व्यंग्य वे कविता में भी सम्वेदनशील है जितने प्रहारक व्यंग्य में।एक साथ दो विधाओं में सक्रिय है,यह सोच कर देख कर अत्यंत प्रसन्नता होती है।शुभकामनाएं
5 व्यंग्य अड्डा के संचालक लखनऊ के श्री परवेश जैन के विचार
परसाई जी की नगरी के श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी की रचनाओं में परसाई की पारसाई झलकती हैंl व्यंग्य संग्रह पुस्तक समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य में 33 व्यंग्य सम्माहित हैं, प्रत्येक व्यंग्य में गहन चिन्तन के पश्च्यात विषय का सावधानी से चयन किया गया हैं l पठनीयता के गुणों की झलक स्वतः साहित्यिक परिवेश से धरोहर स्वरुप प्राप्त हुये हैं l व्यंग्यकार विवेक को फ्रंट कवर पर लिखवा लेना चाहिए “चैलेंज पूरी पढ़ने से रोक नहीं सकोगें” l
अथ चुनाव कथा में पांच अध्यायों का वर्णन में नये प्रयोग दिखलायी देते हैं l
एक शिकायत पुस्तक की कीमत को लेकर हैं 110 पन्नो को समाहित पुस्तक की कीमत 200 रूपए पेपर बैक और 300 रूपए हार्ड बाउंड की हैं जो पाठकीय दृष्टिकोण से अधिक हैं l
6 सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्ययात्री आदरणीय प्रेम जनमेजय जी के आशीर्वाद
अपने आरंभिक काल से व्यंग्य के लक्ष्य सामयिक विषय रहे हैं। अपने समय की विसंगतियों का बयान कर उनपर प्रहार करना, गलत नहीं है। व्यंग्य की प्रकृति प्रहार की है तो व्यंग्यकार वही करेगा। विभिन्न विधाओं के रचनाकार भी अपने समय का बयान करते हैं पर अलग तरह से। मिथक प्रयोग द्वारा रचना संसार निर्मित करने वाले रचनाकार तो पुराकथाओं की आज के संदर्भ में व्याख्या /विश्लेष्णा आदि करते हैं।समस्या वहां आती है जब आज के समय का कथ्य समाचार मात्र बन जाता है,रचना नहीं।
विवेकरंजन श्रीवास्तव की कुछ रचनाओं के आधार पर कह सकता हूँ कि इस विषय मे वे सावधान हैं। वे रचना को ताकत देने के लिए गांधी नेहरू के नामों, ऐतिहासिक घटनाओं आदि के संदर्भ लाते हैं। वे भरत द्वारा राम की पादुका से प्रशासित राज्य को आज उपस्थित इस मानसिकता के कारण उपजी सामयिक विसंगतियों पर प्रहार करने के लिए प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हैं।
वे अपने कहन को पात्रों और कथा के माध्यम से अभिव्यक्त करने में विश्वास करते हैं जिसके कारण कई बार लगता है कि उनकी रचना व्यंग्य धर्म का पालन नही कर रही है। उन्हें तो अभी बहुत लिखना है। मेरी शुभकामनाएं। -प्रेम जनमेजय
7 श्री राकेश सोहम जबलपुर से कहते हैं
ख्यात व्यंग्यकार आदरणीय विवेक रंजन के व्यंग्य संग्रह ‘समस्या का पंजीकरण’ पढ़ा. आज से कुछ दिन पूर्व जब उनका यह संग्रह प्रकाशित होकर आया था तब उन्होंने कहा था कि प्रतियां आने दो आपको भी एक प्रति दूंगा. मैं कोरोना में उलझ गया और वे सतत साहित्य सेवा में लगे रहे. उनकी सक्रियता व्हाट्स एप्प के समूहोंसे मिलती रही. आज उनका यह संग्रह ’21 वीं सदी के व्यंग्यकार’ समूह के माध्यम से पढ़ने को मिला तो मन हर्ष से भर गया. आदरणीय ज्ञान चतुर्वेदी जी द्वारा लिखी गयी भूमिका उनके संग्रह का आइना है. उनके संग्रह में पढ़ी गयी रचनाओं में उतरने से पता चलता है कि उनकी दृष्टी कितनी व्यापक है. एक इंजीनियर होने के नाते तकनीकी जानकारी तो है ही. अपनी पारखी दृष्टी और तकनीकी ज्ञान को बुनने का कौशल उन्हें व्यंग्य के क्षेत्र में अलग स्थान प्रदान करता है. मैंने शुरू के कुछ व्यंग्य पढ़े फिर किताब के अंतिम व्यंग्य से शुरू किया. शुरू के व्यंग्यों में एकरूपता है. वे परिवार से उपजते हैं और विषमताओं पर चोट करते चलते हैं. …आंकड़े बोल्राहे हैं … तो मानना ही पड़ेगा [आंकड़ेबाजी]. ..सफ़ेद को काला बनाने में इन टेक्स को याद किया जाता रहेगा [जी एस टी ] जैसे गहरे पंच व्यंग्यों को मारक बना गए हैं. अपने व्यंग्य में चिंतन की गहराई [दुनिया भर में विवाह में मांग में लाल सिन्दूर भरने का रिवाज़ केवल हमारी ही संस्कृति में है, शायद इसलिए की लाल सिन्दूर से भरी मांग वाली लड़की में किसी की कुलवधू होने की गरिमा आ जाती है .. ‘ख़ास बनने की पहचान थी गाडी की लाल बत्ती’] पिरोते हैं. कुल मिलाकर उनके व्यंग्य बड़ी नजाकत से विसंगतियों को उठाते और फिर चोट करते हैं जिससे पाठक उनकी किताब के व्यंग्य दर व्यंग्य पढता जाता है. इस संग्रह की हार्दिक बधाई. @ राकेश सोहम्
8 जबलपुर से वरिष्ठ व्यंग्य धारा समूह के संचालक श्री रमेश सैनी जी के विचार
विवेकरंजन जी नया संग्रह”समस्या का पंजीकरण और अन्य व्यंग्य” दृष्टि सम्पन्न संग्रह है जिसमें समाज और वर्तमान समय में कोरोना से व्याप्त विसंगतियों पर प्रहार किया गया है.लेखक की नजर मात्र विसंगतियों पर नहीं वरन मानवीय प्रवृत्तियों पर गई है जो कहीं न कहीं पाठक को सजग करती हैं.”शर्म!तुम जहाँ हो लौट आओ”.वर्तमान समाज में आचरण संबंधी इस विकृति ने सामाजिक जीवन में काफी कुछ अराजकता फैलाई है.उस पर अनेक बिंदुओं पर पाठक का ध्यान आकर्षित किया है. समाज के अनेक लोगों पर बात की है. जोकि सोचनीय और चिंतनीय है.यहां पर लेखक नाम के जीव को बक्श दिया है. यह देखा जा रहा है कि व्यंग्यकार भी आज विसंगतियों का पात्र बन गया है और उन पर काफी कुछ लिखा जा रहा है. इसी तरह कारोना का रोना अच्छी रचना है.इंडिया नेटबुक्स से प्रकाशित यह संग्रह पठनीय और संग्रहणीय है. विवेकरंजन जी कवि, कहानीकार और व्यंग्यकार तीनों की भूमिका में है. पर संग्रह में व्यंग्य के अन्याय नहीं होने दिया. बधाई
9 मुम्बई की युवा व्यंग्य लेखिका अलका अग्रवाल सिगतिया लिखती हैं
पहले तो फ्लैप, भूमिका, यह सब ही बड़े कद के हैं। जन्मेजय सर, सूर्यबाला जी, ज्ञान चतुर्वेदी जी, आलोक पुराणिक जी, बी एल आच्छा जी।
33 व्यंग्य शीर्षक बांध लेने वाले।
अभी शीर्षक रचना, समस्या का पंजीकरण पढ़ी, शर्म तुम जहाँ कहीं भी लौट आओ पढ़ीं। विवेक जी के भीतर विचार बहुत परिपक्वता से रूप लेता है, प्रस्तुति भी संतुलित और प्रभावी।
शीर्षक आकर्षक हैं।
10 विद्वान समीक्षक प्रभाशंकर उपाध्याय जी की टीप
संग्रह में 33 व्यंग्य संकलित हैं, जिनमें से नौ में कोरोना उपस्थित है। यह एकरसता की प्रतीति कराता है। यहां सवाल यह है कि कुछ वर्षों बाद जब कोविड-19 की स्मृति धूमिल हो जाएगी तो इस संकलन की प्रासंगिकता क्या होगी? मेरा मानना है कि आपने संग्रह निकालने में जल्दबाजी दिखाई है और इसमें अखबारों में लिखे स्तंभों में प्रकाशित व्यंग्य आलेखों को समाहित किया है। भूमिका लेखक और टिप्पणीकार कदाचित इसी वजह से रचनागत बातें करने से बचे हैं। आप गंभीर रचनाकार हैं। बहुत अच्छा लिख रहे हैं अतः मैं विनम्रतापूर्वक एक सुझाव देना चाहता हूं कि अखबारों के लिए लिखते समय, पहले रचना को शब्द सीमा से मुक्त होकर लिखना चाहिए। उस मूल रूप को अलग से सुरक्षित रखें और उसके बाद शब्द सीमा के अनुरूप संशोधित कर समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में भेज दें। मैं ऐसा ही करता हूं।
आपकी तीन चार रचनाओं को ध्यानपूर्वक पढ पाया हूं। समस्या का पंजीकरण, शर्म! तुम जहां कहीं भी… और चुनाव कथा अच्छी रचनाएं हैं। ‘फार्मेट करना पड़ेगा..’ की बानगी अलग है। बात जो अखरी- ‘नैसर्गिक मानवीय’ के स्थान पर ‘मानव का नैसर्गिक गुण’ लिखा जाना अधिक उपयुक्त होता। इसी प्रकार ‘कुत्ते तितलियों के पर नोंचने..’ वाली पंक्ति मुझे जमी नहीं।
उम्मीद है, मेरी स्पष्टवादिता को अन्यथा नहीं लेंगे।
11 श्री भारत चंदानी जी के विचार
समस्या का पंजीकरण एवं अन्य व्यंग्य की कुछ रचनाएं पढ़ पाया। परसाईं जी की नगरी से आने वाले विवेक रंजन श्रीवास्तव जी एक मंजे हुए व्यंग्यकार हैं।
संग्रह की ज़्यादातर रचनाएं कोरोनकाल और लॉक डाऊन पीरियड की हैं जिनके माध्यम से विवेक जी ने सभी को घेरा है और ऐसा लगता है कि लॉक डाऊन में मिले समय का भरपूर सदुपयोग किया है।
समस्या का पंजीकरण एक सशक्त व्यंग्य रचना है। विवेक जी को बधाई एवं आगे आने वाले रचनाकर्म के लिए शुभकामनाएं।
12 श्री टीकाराम साहू, व्यंग्यकार लिखते हैं
विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के व्यंग्यसंग्रह ‘समस्या का पंजीकरण और अन्य व्यंग्य’ के कुछेक व्यंग्यों को पढ़ा और कुछ पर दृष्टिपात किया। इस संग्रह के व्यंग्यों की सबसे बड़ी विशेषता है- रोचकता और धाराप्रवाह। संग्रह का दूसरा व्यंग्य ‘जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए’ की पंक्तियां हैं- ‘थानेदार मार-पीट कर अपराधी को स्वीकारोक्ति के लिए मजबूर करता रहता है। जैसे ही अपराधी स्वीकारोक्ति करता है, उसके सरकारी गवाह बनने के चांसेज शुरू हो जाते हैं’। ‘शर्म! तुम जहाँ कहीं भी हो लौट आओ’ व्यंग्य में जीवन के हर क्षेत्र में किस तरह शर्म गायब हो रही है इस पर बड़े रोचक प्रसंगों के साथ प्रस्तुत किया है। व्यंग्य में कटाक्ष है-‘क्या करू, कम से कम अखबार के खोया पाया वाले कालम में एक विज्ञापन ही दे दूँ ‘‘प्रिय शर्म! तुम जहाँ कहीं भी हो लौट आओ, तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा।’’ ‘किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन’ व्यंग्य में चुनाव के दौरान पोलिंग बूथ पर कृष्ण का अर्जुन को उपदेश रोचक है। गर्दन पर घुटना, जरूरी है आटा और डाटा, स्वर्ग के द्वार पर कोरोना टेस्ट अलग-अलग तेवर के व्यंग्य है। शीर्षक बड़े मजेदार है जो व्यंग्य के प्रति उत्सुकता जगाते हैं।
विनम्रतापूर्वक एक सुझाव देना चाहूंगा कि व्यंग्यसंग्रह का दूसरा संस्करण प्रकाशित करे तो पहला व्यंग्य कोई दूसरा व्यंग्य लीजिए। पठनीय व्यंग्य संग्रह के लिए श्रीवास्तवजी को हार्दिक बधाई।
और अंत मे लेखक की अपनी बात विवेक रंजन श्रीवास्तव
इससे पहले जो मेरी व्यंग्य की पुस्तके छपी राम भरोसे, कौवा कान ले गया, मेरे प्रिय व्यंग्य, धन्नो बसंती और वसंत , तब व्हाट्सएप ग्रुप नहीं थे इसलिए किंचित पत्र पत्रिकाओं में समीक्षा छपना ही पुस्तक को चर्चा में लाता था . किंतु वर्तमान समय में सोशल मीडिया से हम सब बहुत त्वरित जुड़े हुए हैं. और इसका लाभ आज मेरी व्यंग्य की इस पांचवी पुस्तक की व्हाट्सएप समूह चर्चा में स्पष्ट परिलक्षित हुआ. जो प्रबुद्ध समूह ऐसी पुस्तक का लक्ष्य पाठक होता है उस में से एक महत्वपूर्ण हिस्से तक बड़ी सहजता से दिन भर में पीडीएफ किताब पहुंच गई।
यद्यपि जिस बड़े समूह को इंगित करते हुए व्यंग्य लिखे जा रहे हैं, उन सोने का नाटक करने वालो को जगाना दुष्कर कार्य है, काश की उनके व्हाट्सएप समूह में भी अपनी पुस्तकें सर्क्युलेशन में आ सकें ।
इसी तरह सबसे सदा आत्मीयता की अपेक्षाओं के संग सदा नए व्यंग्य लेखन के साथ
आप सबका अपना
विवेक रंजन श्रीवास्तव,
जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈