श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता समुंदर जैसा जीवन ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 17 ☆ समुंदर जैसा जीवन 

 

समुंदर जैसा जीवन जीने की चाह मेरे मन में नहीं,

समुंदर में उठते तूफानों को झेलना मेरे बस की  बात नहीं ||

 

सांय-सांय सी आवाज कर समुंदर में ऊँची उठती लहरें,

जिंदगी में इन लहरों से टकराना मेरे बस की  बात नहीं ||

 

तेज हवाओं से हिलोरे लेता समुंदर आक्रोशित दिखता,

समुंदर जैसा आक्रोश दिखाना मेरे बस की बात नहीं ||

 

अंतहीन समुंदर में बड़े जहाज भी हिचकोले भरते हैं,

मैं छोटी सी ताल बड़े जहाजों को झेलना मेरे बस की बात नहीं ||

 

लहरें ऊंची-नीची बहकर समुंदर तट से टकराती है,

अपनों से टकराकर अपनों के संग जीना मेरे बस की बात नहीं ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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