प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  के सहकर्मी प्रतिष्ठित साहित्यकार  आचार्य भगवत दुबे जी द्वारा  लिखित सांसों के संतूर पर उनके विचार ।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  के  काव्य  विमर्श को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 12 ☆

☆ ‘सांसों के संतूर’ – आचार्य भगवत दुबे – मेरी प्रिय कृति ☆

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आचार्य भगवत दुबे

मेरे प्रिय सहकर्मी आचार्य भगवत दुबे जी एक प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं । स्वभाव से सरल स्नेहिल व मृदुभाषी व्यक्ति हैं ।

उनकी 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं । वे सभी सुरुचिपूर्ण और आनंद प्रद हैं । दुबे जी समाजसेवी भी हैं अनेकों साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं और निर्धारित तिथियों में कई समारोह भी आयोजित करते रहते हैं ।

Sanso ke Santoor by Acharya Bhagwat Dubey by [Dubey, Acharya Bhagwat]उनका लेखन विभिन्न विषयों पर तथा विभिन्न साहित्यिक विधाओं में हैं। मैंने उनकी कुछ पुस्तकें पढ़ी हैं । सांसों के संतूर दोहा छंद में लिखित उनकी एक सारगर्भित कृति है, जिसमें कवि की दूर दृष्टि तथा सामाजिक दोषों को दूर करने की पावन भावना परिलक्षित होती है । दोहा एक ऐसा छंद है जिसमें थोड़े शब्दों में मन की गहन अभिव्यक्ति व्यक्त करने की क्षमता है ।

पुराने अनेकों कवियों ने इसी में भक्ति और आध्यात्मिक भावनाओं को प्रकट किया है । कवि भगवत दुबे जी ने अपनी इस पुस्तक में सरल सार्थक शब्दों में समाज के विभिन्न क्षेत्रों की बुराइयों को सुधारने की दृष्टि से अपने पवित्र मनोभावना दर्शाई है । यह पुस्तक मुझे बहुत अच्छी लगी । साहित्यिक रचना कैसी हो, उनके मनोभाव सुनें

काव्य वही जिसमें रहे सरस रूप रस गन्ध

अगर नहीं तो व्यर्थ है नीरस काव्य प्रबंध

उन्होंने इसी शर्त का अपनी समस्त रचनाओं में निर्वाह किया है । मेरे कथन की पुष्टि में उनके कुछ भावपूर्ण दोहों का मधुर आनंद लीजिए

जीते जी ना कर सकी जो मां गोरस पान

करते उसकी मृत्यु पर पंचरत्न गोदान

 

माता तेरी गोद में सुख है स्वर्ग समान

फिर से बनना चाहता मैं बच्चा नादान

 

आज की सामाजिक दशा पर वे लिखते हैं

ज्ञान बुद्धि से हो गया बड़ा बाहुबल आज

गुंडों से भयभीत है सारा सभ्य समाज

 

रुग्ण हुई सद्भावना बदल गए आदर्श

बहुत घिनौना हो गया सत्ता का संघर्ष

 

ग्रामीण और शहरी व्यवहार में अंतर पर वे लिखते हैं

भिक्षुक अब भी गांव में पाते आटा दाल
शहरों में तो डांट कर देते उन्हें हकाल

पूरी पुस्तक में ऐसे ही हृदय को छूने वाले दोहे हैं ।

अपनी भावना को भी मैं एक दोहे में प्रकट कर अपने प्रिय कवि का अभिनंदन करता हूँ

भगवत जी की लेखनी तीक्ष्ण कुशल गुणवान

पाठक मन की चाह का रखती पूरा ध्यान

उन से और भी ऐसी रचनाओं की प्राप्ति की कामना सहित

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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subedar pandey kavi atmanand

भागवत जी की लेखनी,शोध सत्य संधान।
अपनी रचना से सदा, बांट रहे हैं ज्ञान।।
रचना में हृदय स्पर्शी यथार्थ युक्त है रचना कार को बधाई अभिनंदन।