श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ सम्पन्नता ☆
बूढ़े जीवन ने
यकायक पूछा,
कभी सोचा
अब तक
क्या खोया
क्या पाया,
अपनी संपन्नता पर
मैं इतराया,
मर्त्यलोक में
क्षरण के मूल्य पर
अक्षय पाता रहा,
साँसे खोता रहा
अनुभवी होता रहा,
रीता आया था
सृष्टि सम्पन्न लौट रहा हूँ,
सो खोया कुछ नहीं
बस, पाया ही पाया!
© संजय भारद्वाज
30.7.2017, रात्रि 8.18 बजे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
जीवन में संतोषी जीव बनो , ऐसी शिक्षा देती रचना ।
सच है, मनुष्य खाली हाथ आता है, सृष्टि संपन्न लौटता है। बहुत सुंदर कविता।