श्री विजय कुमार

(आज  विजयादशमी पर्व पर प्रस्तुत है श्री विजय कुमार जी, सह-संपादक शुभ तारिका  का आलेख  “बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा महोत्सव ”)

☆ विजयादशमी पर्व विशेष –  बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा महोत्सव ☆ 

हरियाणा में जलता है सबसे ऊंचा रावण

विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले के निर्माण के लिए पूरे विश्व में हरियाणा के अम्बाला जिला का बराड़ा कस्बा चर्चित रहा है। विश्व के सबसे ऊंचे रावण का पुतला दहन का प्रसारण वैसे तो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा प्रत्येक वर्ष किया जाता है। इस अवसर पर कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण करने हेतु कई टेलीविजन चैनल्स की ओ बी वैन भी आयोजन स्थल पर आती हैं।

श्री रामलीला क्लब, बराड़ा (जिला अम्बाला) के संस्थापक अध्यक्ष श्री राणा तेजिन्द्र सिंह चैहान द्वारा विश्व का सबसे ऊंचा रावण बनाने का निरंतर कीर्तिमान स्थापित किया जा रहा है। इस उपलब्धि का सम्मान करते हुए भारत की एकमात्र सर्वप्रतिष्ठित कीर्तिमान संकलन पुस्तक ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड’ के (2011 से 2017 तक) छह वार्षिक संकलनों में बराड़ा (हरियाणा) में निर्मित होने वाले विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले को सम्मानपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। भारत के इतिहास में निर्मित होने वाला अब तक का यह सबसे पहला व अद्भुत रावण का पुतला है जिसने किसी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर की कीर्तिमान पुस्तक में छह बार अपने नाम का उल्लेख कराया हो। बराड़ा के सबसे ऊंचे रावण के पुतले को छह बार लिम्का बुक आॅफ रिकार्ड में स्थान प्राप्त होना वास्तव हरियाणावासियों के लिए गर्व का विषय है। इस उपलब्धि का श्रेय क्लब के सभी सदस्यों को, खासतौर पर क्लब के संस्थापक अध्यक्ष श्री राणा तेजिंद्र सिंह चैहान एवं उनके निर्देशन में काम करने वाले लगभग सौ मेहनतकश सदस्यों को जाता है।

श्री चैहान ने बताया कि उनके सहयोगी और वे हर वर्ष अपै्रल-मई माह से ही रावण बनाने का कार्य आरंभ कर देते हैं। अथक परिश्रम के बाद इसे दशहरे से दो-तीन दिन पूर्व दशहरा ग्राउंड में दर्शकों के देखने के लिये खड़ा कर दिया जाता है।

राणा तेजिन्द्र सिंह चैहान के अनुसार विश्व कीर्तिमान स्थापित करने वाले इस रावण के निर्माण का मकसद समाज में फैली सभी बुराइयों को अहंकारी रावण रूपी पुतले में समाहित करना है। पुतले की 210 फुट की ऊंचाई सामाजिक बुराइयों एवं कुरीतियों जैसे अहंकार, आतंकवाद, कन्या भू्रण हत्या, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, बढ़ती जनसंख्या, दहेजप्रथा तथा जातिवाद आदि का प्रतीक है। रावण दहन के समय आतिशबाजी का भी एक उच्चस्तरीय आयोजन किया जाता है।

विजयदशमी के दिन दशहरा ग्राउंड में प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों की उपस्थिति में रिमोट कंट्रोल का बटन दबाकर विश्व कीर्तिमान स्थापित करने वाले इस विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले को अग्नि को समर्पित किया जाता रहा है।

श्रीरामलीला क्लब, बराड़ा विश्वस्तरीय ख्याति अर्जित कर चुका है। सामाजिक बुराइयों के प्रतीक विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले का निर्माण किए जाने का कीर्तिमान इस क्लब ने स्थापित किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सहयोगियों व शुभचिंतकों के समर्थन व सहयोग के बिना किसी भी संस्था का शोहरत की बुलंदी पर पहुंचना संभव नहीं होता।

रावण को प्रकांड पंडित वरदानी राक्षस कहा जाता था। लेकिन कैसे वो, जिसके बल से त्रिलोक थर-थर कांपते थे, एक स्त्री के कारण समूल मारा गया? वो भी वानरों की सेना लिये एक मनुष्य से। इन बातों पर गौर करें तो ये मानना तर्क से परे होगा। लेकिन रावण के जीवन के कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिनसे कम ही लोग परिचित होंगे। पुराणों के अनुसार  –

कैसे हुआ रावण का जन्म?

रावण एक ऐसा योग है जिसके बल से सारा ब्रह्माण्ड कांपता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो रावण जिसे राक्षसों का राजा कहा जाता था वो किस कुल की संतान था। रावण के जन्म के पीछे के क्या रहस्य हैं? इस तथ्य को शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। रावण के पिता विश्वेश्रवा महान ज्ञानी ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। विश्वेश्रवा भी महान ज्ञानी सन्त थे। ये उस समय की बात है जब देवासुर संग्राम में पराजित होने के बाद सुमाली माल्यवान जैसे राक्षस भगवान विष्णु के भय से रसातल में जा छुपे थे। वर्षों बीत गये लेकिन राक्षसों को देवताओं से जीतने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। एक दिन सुमाली अपनी पुत्री कैकसी के साथ रसातल से बाहर आया, तभी उसने विश्वेश्रवा के पुत्र कुबेर को अपने पिता के पास जाते देखा। सुमाली कुबेर के भय से वापस रसातल में चला आया, लेकिन अब उसे रसातल से बाहर आने का मार्ग मिल चुका था। सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि पुत्री वह उसके लिए सुयोग्य वर की तलाश नहीं कर सकता इसलिये उसे स्वयं ऋषि विश्वेश्रवा के पास जाना होगा और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखना होगा। पिता की आज्ञा के अनुसार कैकसी ऋषि विश्वेश्रवा के आश्रम में पहुंच गई। ऋषि उस समय अपनी संध्या वंदन में लीन थे। आंखें खोलते ही दृष्टि ने अपने सामने उस सुंदर युवती को देखकर कहा कि वे जानते हैं कि उसके आने का क्या प्रयोजन है? लेकिन वो जिस समय उनके पास आई है वो बेहद दारुण वेला है जिसके कारण ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होने के बाद भी उनका पुत्र राक्षसी प्रवृत्ति का होगा। इसके अलावा वे कुछ नहीं कर सकते। कुछ समय पश्चात् कैकसी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसके दस सिर थे। ऋषि ने दस शीश होने के कारण इस पुत्र का नाम दसग्रीव रखा। इसके बाद कुंभकर्ण का जन्म हुआ जिसका शरीर इतना विशाल था कि संसार में कोई भी उसके समकक्ष नहीं था। कुंभकर्ण के बाद पुत्री सूर्पणखा और फिर विभीषण का जन्म हुआ। इस तरह दसग्रीव और उसके दोनों भाई और बहन का जन्म हुआ।

रावण ने क्यों की ब्रह्मा की तपस्या?

ऋषि विश्वेश्रवा ने रावण को धर्म और पांडित्य की शिक्षा दी। दसग्रीव इतना ज्ञानी बना कि उसके ज्ञान का पूरे ब्रह्माण्ड में कोई सानी नहीं था। लेकिन दसग्रीव और कुंभकर्ण जैसे जैसे बड़े हुए उनके अत्याचार बढ़ने लगे। एक दिन कुबेर अपने पिता ऋषि विश्वेश्रवा से मिलने आश्रम पहुंचे तब कैकसी ने कुबेर के वैभव को देखकर अपने पुत्रों से कहा कि तुम्हें भी अपने भाई के समान वैभवशाली बनना चाहिए। इसके लिए तुम भगवान ब्रह्मा की तपस्या करो। माता की आज्ञा मान तीनों पुत्र भगवान ब्रह्मा के तप के लिए निकल गए। विभीषण पहले से ही धर्मात्मा थे। उन्होंने पांच हजार वर्ष एक पैर पर खड़े होकर कठोर तप करके देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद पांच हजार वर्ष अपना मस्तक और हाथ ऊपर रखकर तप किया जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए और विभीषण ने भगवान से असीम भक्ति का वर मांगा।

क्यों सोता रहा कुंभकर्ण?

कुंभकर्ण ने अपनी इंद्रियों को वश में रखकर दस हजार वर्षों तक कठोर तप किया। उसके कठोर तप से भयभीत होकर देवताओं ने देवी सरस्वती से प्रार्थना की। तब भगवान से वर मांगते समय देवी सरस्वती कुंभकर्ण की जिह्ना पर विराजमान हो गईं और कुंभकर्ण ने इंद्रासन की जगह निंद्रासन मांग लिया।

रावण ने किससे छीनी लंका?

दसग्रीव अपने भाइयों से भी अधिक कठोर तप में लीन था। वो प्रत्येक हजारवें वर्ष में अपना एक शीश भगवान के चरणों में समर्पित कर देता। इस तरह उसने भी दस हजार साल में अपने दसों शीश भगवान को समर्पित कर दिये। उसके तप से प्रसन्न हो भगवान ने उसे वर मांगने को कहा तब दसग्रीव ने कहा कि देव दानव गंधर्व किन्नर कोई भी उसका वध न कर सकें। वो मनुष्यों और जानवरों को कीड़ों की भांति तुच्छ समझता था। इसलिये वरदान में उसने इनको छोड़ दिया। यही कारण था कि भगवान विष्णु को उसके वध के लिए मनुष्य अवतार में आना पड़ा। दसग्रीव स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने लगा था। रसातल में छिपे राक्षस भी बाहर आ गये। राक्षसों का आतंक बढ़ गया। राक्षसों के कहने पर लंका के राजा कुबेर से लंका और पुष्पक विमान छीनकर स्वयं बन गया लंका का राजा।

कैसे हुआ रावण का वध?

मां दुर्गा के प्रथम रूप शैलपुत्री की पूजा के साथ नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के साथ ही साथ भगवान राम का भी ध्यान पूजन किया जाता है। क्योंकि इन्हीं नौ दिनों में भगवान राम ने रावण के साथ युद्ध करके दशहरे के दिन रावण का वध किया था जिसे ‘अधर्म पर धर्म की विजय’ के रूप में जाना जाता है।

भगवान राम का जन्म लेना और रावण का वध करना यह कोई सामान्य घटना नहीं है। इसके पीछे कई कारण थे जिसकी वजह से विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा।

अपनी मौत का कारण सीता को जानता हुआ भी रावण सीता का हरण कर लंका ले गया। असल में यह सब एक अभिशाप के कारण हुआ था।

यह अभिशाप रावण को भगवान राम के एक पूर्वज ने दिया था। इस संदर्भ में एक कथा है कि बल के अहंकार में रावण अनेक राजा-महाराजाओं को पराजित करता हुआ इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुंचा। राजा अनरण्य और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण अनरण्य रावण के हाथों पराजित हुआ। रावण राजा अनरण्य का अपमान करने लगा।

अपने अपमान से क्रोधित होकर राजा अनरण्य ने रावण को अभिशाप दिया कि तूने महात्मा इक्ष्वाकु के वंशजों का अपमान किया है इसलिए मेरा शाप है कि इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के पुत्र राम के हाथों तुम्हारा वध होगा।

ईश्वर विधान के अनुसार भगवान विष्णु ने राम रूप में अवतार लेकर इस अभिशाप को फलीभूत किया और रावण राम के हाथों मारा गया।

 

©  श्री विजय कुमार

सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)

संपर्क – 103-सी, अशोक नगर, अम्बाला छावनी-133001, मो.: 9813130512

ई मेल- [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments