सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “बेबसी”। )

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यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 55 ☆

☆  बेबसी ☆

 

मालगाड़ी के उन डब्बों को

धीरे-धीरे पीछे की ओर जाते देख रही थी,

बिलकुल वैसे जैसे वो रेंग रहे हों…

 

रेंग तो सभी रहा है-

वो मजदूर, जो दो जून का खाना नहीं जुगाड़ पाते,

वो व्यापारी, जिनका व्यापार ठप्प सा पडा है,

देश की अर्थव्यवस्था, जो रुक सी गयी है,

वो डॉक्टर, जो थक गए हैं अब काम करते-करते-

कहीं भी तो किसी को कोई ऐसा स्टेशन आते नहीं दिखता

जहां बेंच पर लेटकर,

कुछ पल को आराम से पैर पसारकर

सुस्ता लें!

 

कहाँ सोचा था किसी ने कि प्रलय यूँ इस कदर

सारी दुनिया को निष्क्रिय कर देगी?

सब हताश से आसमान की ओर यूँ देख रहे हैं

जैसे कोई मसीहा आएगा और उनको कर देगा रिहा

उनकी सारी मुश्किलों से!

 

चलो, अच्छा ही है,

आदमी अब भी आकाश की ओर देख रहा है,

उसने बायीं ओर पलटकर अपनी आँख बंद नहीं कर ली-

वरना वो मान ही लेता कि मर चुका है वो

और उसे इंतज़ार भी नहीं रहता कि कोई उसे दफना ही दे

या फिर दे दे आग उसकी चिता को!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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