श्री अरुण कुमार डनायक
(श्री अरुण कुमार डनायक जी महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. लेख में वर्णित विचार श्री अरुण जी के व्यक्तिगत विचार हैं। ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक दृष्टिकोण से लें. हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ प्रत्येक बुधवार को आत्मसात कर सकें। आज प्रस्तुत है “आज़ाद हिन्द फौज के सेनानी और बापू ”)
☆ गांधी चर्चा # 42 – बापू के संस्मरण – 22 ☆
☆ आज़ाद हिन्द फौज के सेनानी और बापू ☆
गांधी जी के अपनी ओर से आज़ाद हिन्द फौज के कैदियो के बचाव मे कोई कमी नहीं रहने दी थी ,उनकी सलाह पर कॉंग्रेस कार्य समिति ने अपनी राय व्यक्त की थी कि ‘यह सही और उचित भी है कि कॉंग्रेस आज़ाद हिन्द फौज के सदस्यो का मुकदमे मे बचाव करे और संकटग्रस्तो को सहयता दे। ‘भूलाभाई देसाई, तेज़ बहादुर सप्रू और जवाहर लाल नेहरू आज़ाद हिन्द फौज के सैनिको के बचाव मे आगे आए थे।
आज़ाद हिन्द फौज के केदियो को अतिशय गुप्तता से भारत लाया गया था।सरदार पटेल ने गांधी जी को यह सूचना दी थी कि कुछ कैदियो को फौजी अदालत मे मुकदमा चला कर गोलो मार दी गई तब गांधीजी ऐसी कार्यवाही के कड़े विरोध मे वाइसराय लार्ड बेवेल को लिखा था कि मैं सुभाष बाबू द्वारा खड़ी की गई सेना के सैनिकों पर चल रहे मुकदमे की कार्यावही को बड़े ध्यान से देख रहा हूँ। यद्पि शस्त्र बल से किए जानेवाले किसी संरक्षण से मैं सहमत नहीं हो सकता, फिर भी शस्त्रधारी व्यक्तिओ द्वारा अकसर जिस वीरता और देशभक्ति का परिचय दिया जाता हैं,उसके प्रति मैं अंधा नहीं हूँ।जिन लोगो पर मुकदमा चल रहा है ,उनकी भारत पूजा करता है।मैं तो इतना ही कहूँगा कि जो कुछ किया जा रहा है वह उचित नहीं हैं। गांधीजी इन कैदियो के बचाव को लेकर भारत के प्रधान सेनापति जनरल आचिनलेक से भी मिले और उनसे आश्वस्त करनेवाला उत्तर पाकर गांधी जी को प्रसन्नता हुई थी।
गांधीजी सरदार पटेल के साथ इन कैदियो से दो बार मिलने गए –एक बार काबुल लाइंस मे और दूसरी बार लाल किले मे। बैरकों मे चल कर गांधी जी जनरल मोहन सिंह से मिलने गए। वे आज़ाद हिन्द फौज के संस्थापक थे वहाँ से गांधीजी फौजी अस्पताल भी गए और वे मेजर जेनरल चटर्जी ,मेजर जनरल लोकनाथन और कर्नल हबिबुर्रहमान से भी मिले
गांधीजी ने आज़ाद हिन्द फौज के सैनिको की बहादुरी और भारत की स्वतन्त्रता के खातिर मरने की उनकी तैयारी की खुल कर हृदय से प्रशंसा की थी।
© श्री अरुण कुमार डनायक
42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39