श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 20 ☆ खुशियों का झरना ☆
कभी खुशियों के झरनों की चाहत नहीं थी मुझे,
मुझे तो बस एक शीतल ओस की बूंद की दरकार थी ||
कभी खुशियों के खजाने की चाहत नहीं थी मुझे,
मुझे तो बस मोतियों सी रिश्तों की माला की दरकार थी ||
कभी खुशियों के समुन्द्र की चाहत नहीं थी मुझे,
मुझे तो बस मीठे पानी की झील सी जिंदगी की दरकार थी ||
कभी फूलों की बगिया की चाहत नहीं थी मुझे,
मुझे तो बस कांटों भरी जिंदगी में एक गुलाब की दरकार थी ||
जिंदगी हर हाल खुशनुमा हो ऐसी चाहत नहीं थी मुझे,
मुझे तो बस ग़मों भरी जिंदगी में एक ख़ुशी की दरकार थी ||
कभी आकाश छू लेने की जीवन में चाहत नहीं थी मुझे,
मुझे तो बस अपने पैर जमीं पर रहे बस यही दरकार थी ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर