डॉ राकेश ‘ चक्र’
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं एक गीत “सकल सृष्टि में जीवन भरते ”.)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 47 ☆
☆ गीत – सकल सृष्टि में जीवन भरते ☆
पश्चिम में सूरज जी छिपते
पूरब में चंदा जी उगते।।
दोनों का वंदन – अभिनंदन
सकल सृष्टि में जीवन भरते।।
निशा बढ़ी ज्यों धीरे- धीरे
चंदा का बिखरा उजियारा
तारों की झालर वे लेकर
दिखा रहे छवियों को प्यारा।।
शरद पूर्णिमा वंदित- नंदित
हर्षित मन में पुष्प बरसते।।
सकल सृष्टि में जीवन भरते।।
शीतल रात हुई नभ शोभित
दमक रहा हर झिलमिल कोना
प्रियतम बंशी ले मुस्काएँ
रास रचाएँ सोना- सोना।।
हर गोरी की प्यास बुझ रही
कामदेव के अहमा मरते।
सकल सृष्टि में जीवन भरते।।
खूब नहाए हम जी भरकर
अनुपम छटा गीत है गाती
मौन हो गईं सभी दिशाएँ
शशि की सोलह कला सुहातीं।।
पूरी धरती धवल हो गई
चंदा के नए रूप उभरते।
सकल सृष्टि में जीवन भरते।।
© डॉ राकेश चक्र
(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)
90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र. मो. 9456201857
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