श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता देश के जांबाज सैनिकों की शहादत को समर्पित। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 24 ☆देश के जांबाज सैनिकों की शहादत को समर्पित

उस माँ को नमन है जो सारे कष्ट पाकर पुत्र को जन्म देती है,

जान का खतरा जानते हुए भी उसे देश की सीमा पर भेजती है,

माँ ने उसके लिए जो सुनहरे सपने देखे वो कभी पूरे  नहीं हो पायेंगे ||

 

उस माँ के आगे नतमस्तक हूँ जो उसे शहीद होते अपनी आँखों से देखती है,

नम आँखों से उसे विदा करती है जो फिर कभी वापिस नहीं आएंगे ||

 

उस स्त्री को नमन है जो सब जानते हुए भी उसकी अर्धागिनी बन जाती है,

और भरी जवानी में पति के शहीद होने पर विधवा हो जाती है,

उसने पति संग जो सुहावने सपने देखे वो अब कभी पुरे नहीं पायेंगे ||

 

उस पत्नी के आगे नतमस्तक हूँ जो पति की शहादत अपनी आँखों से देखती है,

नम आँखों से उसे विदा करती है जो फिर कभी वापिस नहीं आएंगे ||

 

उन बच्चों को नमन है जो नन्ही आँखों से पिता की अर्थी उठते देखते हैं,

और अपने नन्हे कोमल हाथों से अपने पिता की चिता को अग्नि देते हैं,

पिता ने बच्चों के लिए जो सपने देखे वो अब कभी पूरे नहीं पायेंगे ||

 

इन बच्चों के आगे नतमस्तक हूँ जो पिता की मृत देह अपनी आँखों से देखते हैं,

इस बात से अनजान हो विदा देते हैं की ये कभी वापिस नहीं आएंगे ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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