श्री अरुण कुमार डनायक
(श्री अरुण कुमार डनायक जी महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ प्रत्येक बुधवार को आत्मसात कर सकें। आज प्रस्तुत है “विभिन्नता में समरसता”)
☆ आलेख ☆ विभिन्नता में समरसता -1 ☆
विश्व में अनेक सभ्यतायें फली फूली किन्तु काल ने उनमें से अधिकांश का नामोनिशान मिटा दिया। मिस्र की सभ्यता और संस्कृति जो ईसा पूर्व दो- अढाई हज़ार साल पुरानी थी, उसका आज कोई अस्तित्व नहीं बचा है। अरब देशों का हाल तो और भी बुरा है वे आपस में ही लड़ रहे है। एशिया और यूरोप के अनेक देश परिवर्तन की आंधी के आगे ढह गए हैं।उर्दू के प्रसिद्ध शायर सर मुहम्मद इकबाल इसलिए लिख गए कि:
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा।।
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।। सारे…
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।। सारे…
हमारी अजर अमर हस्ती को संक्षेप में बता पाना दुष्कर है। भारत के असंख्य गाँव, शहर, प्रांत के निवासी जिन भाषाओं में संवाद करते आये हैं जो भोजन वे ग्रहण करते रहे हैं, जिस कला संगीत, नृत्य और साहित्य ने उन्हें बांधे रखा है और सदियों पुराने रीतिरिवाज, त्यौहार, मनोरंजन के साधन, खेलकूद आदि जो आज भी अक्षुण हैं, गहन अध्यन का विषय हैं और इन पर लिखा भी बहुत गया हैं। इन्हे हम सदियों से मानते आए हैं, उनका परिपालन करते आए हैं। यही हमारी सामासिक संस्कृति के मूल स्तम्भ है, हमारी विस्तृत परम्परा का अभिन्न अंग है।
भारत में दो विभिन्न संस्कृतियों के मेलमिलाप का पहला उदाहरण आर्य व द्रविड़ सभ्यताओं के परस्पर मिलन के रूप में दिखाई देता है। आर्य उत्तर भारत के निवासी तो दक्षिण भारत में द्रविड़ सभ्यता फल फूल रही थी। ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अगस्त्य ने सर्वप्रथम उत्तर और दक्षिण भारत में समन्वय स्थापित करते हुए विभिन्न जन समूहों में स्नेह संपर्क तथा भाषाओं में प्रभावपूर्ण विकास लाने का कार्य किया। उन्होंने आर्येतर जाति की कन्या लोपमुद्रा से विवाह कर समन्वय व उदारता की भावना को और आगे बढाया। महर्षि अगस्त्य के पश्चात रामायण व महाभारत जैसे महाकाव्यों ने भी उत्तर और दक्षिण के भेद को मिटाने में महती भूमिका निर्वाहित की। संस्कृत ने इन भारतीय प्रदेशों के निवासियों के बीच संपर्क भाषा का स्थान पाया किन्तु तमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ आदि क्षेत्रीय भाषाए भी फलती फूलती रही व अनेक उच्च स्तर के साहित्य का सृजन इन भाषाओं में होता रहा। शैव वैष्णव समुदाय के कवियों द्वारा रचे गए भक्ति काव्यों ने हमारी सामासिक संस्कृति और अधिक बल प्रदान किया। आर्य एवं द्रविड़ संस्कृति और कई प्रादेशिक व साम्प्रदायिक संस्कृतियों ( जैन बौध, शैव, वैष्णव आदि) के संगम से सामासिक संस्कृति बनी। भिन्न भिन्न पर्व, त्यौहार, वृत, उत्सव, आदि में आर्य संस्कृति आज भी सजीव है। शिल्प के क्षेत्र में, उत्तर व दक्षिण, दो अलग अलग शैलियाँ का प्रभाव हमारे प्राचीन मंदिरों भवनों आदि में दिखाई देता है। उत्तर भारत के हिन्दुस्तानी संगीत व दक्षिण के कार्नेटिक संगीत की जुगलबंदी भी राष्ट्रीय समरसता की प्रतीक है। इस अमिट अंतरधारा की विशेषता है विविधताओं और विभिन्नताओं के बीच अभिन्नता को बनाए रखने की संजीवनी सामंजस्य भावना। इस सार्वजनीन भावना पर समस्त भारतीयों आर्य, आर्येतर, द्रविड़ आदि सभी का समान अधिकार है। यही भावना हम सभी को एक बनाए रख सकने में सक्षम है।
क्रमशः ....
© श्री अरुण कुमार डनायक
42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39