डॉ. सलमा जमाल
( सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. सलमा जमाल जी ने रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । s 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। अब तक १० पुस्तकें प्रकाशित।आपकी लेखनी को सादर नमन।)
आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।
☆ ग़ज़ल – मश्क़ ए सुख़न ☆
पत्थर के सनम से ,
वफ़ा कर रहा हूं मैं ।
इल्ज़ाम लगा है कि ,
ज़फ़ा कर रहा हूं मैं ।।
तलाश है मंज़िल की ,
ख़ुदग़र्ज़ी का दौर है ।
रस्ते के ख़ार चुन के ,
सफा कर रहा हूं मैं ।।
ज़ुल्म पर खोलूं ज़बां ,
मेरी क्या बिसात ।
बेचा ज़मीर ख़ुद का
नफ़ा कर रहा हूं मैं ।।
मेरा दोस्त बेवजह ,
ही बद गुमान है ।
ज़फ़ाओं के बदले ,
वफ़ा कर रहा हूं मैं ।।
माँ बाप की ख़िदमत से,
जन्नत है हमारी ।
जानकर भी सलमा ,
ख़फ़ा कर रहा हूं मैं ।।
© डा. सलमा जमाल
298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈