आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित कविता आव्हान। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 33☆
☆ कविता – आव्हान ☆
जीवन-पुस्तक बाँचकर,
चल कविता के गाँव.
गौरैया स्वागत करे,
बरगद देगा छाँव.
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कोयल दे माधुर्य-लय,
देगी पीर जमीन.
काग घटाता मलिनता,
श्रमिक-कृषक क्यों दीन?
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सोच बदल दे हवा, दे
अरुणचूर सी बाँग.
बीना बात मत तोड़ना,
रे! कूकुर ली टाँग.
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सभ्य जानवर को करें,
मनुज जंगली तंग.
खून निबल का चूसते,
सबल महा मति मंद.
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देख-परख कवि सत्य कह,
बन कबीर-रैदास.
मिटा न पाए, न्यून कर
पीडित का संत्रास.
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श्वान भौंकता, जगाता,
बिना स्वार्थ लख चोर.
तू तो कवि है, मौन क्यों?
लिख-गा उषा अँजोर.
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
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