श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ शेड्स☆
पहले आठ थे
फिर बारह हुए
सोलह, बत्तीस,
चौंसठ, एक सौ अट्ठाइस,
अब दो सौ चौंसठ होते हैं,
रंगों के इतने शेड
दुनिया में कहीं नहीं मिलते हैं,
रंगों की डिब्बी दिखाता
दुकानदार
सीना फूलाकर
बता रहा था..,
मेरी आँखों में
आदमी के प्रतिपल बदलते
अगनित रंगों का प्रतिबिम्ब
आ रहा था, जा रहा था…!
© संजय भारद्वाज
27.10. प्रातः 8:44 बजे।
मोबाइल– 9890122603
रोज मर्रा की साधारण बातों में जीवन का सार ढूंढनाज्ञही शायद दिव्य दृष्टि हैं
धर्म, मजहब, जात-पात में बँटा मनुष्य आज बहुरूपिया हो गयया है, ऐसे में सैकड़ों रंगों को ढोते इस मानव को पहचान पाना अति दुर्लभ है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।