डॉ निधि जैन
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “मोम का गुड्डा”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 29 ☆
☆ मोम का गुड्डा ☆
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
दिन में सूरज जैसा रूप क्या कहूँ,
रात की चाँदनी जैसी कोमलता क्या कहूँ,
सुन्दर सजीला रूप क्या कहूँ।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
वर्षों किया इंतज़ार क्या कहूँ,
हर दिन हर पल रो-रो कर काटे क्या कहूँ,
इतनी खुशियों की सौगात लेकर आया है क्या कहूँ।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
इतना प्यार मुझे दिया है क्या कहूँ,
मेरे मोम के गुड्डे में प्यार करने वाला दिल है,
मेरे मोम के गुड्डे में खेलने, कूदने वाला नटखट मन है।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
पल में हँसने, पल में रोने वाला मासूम मन है,
हर्ष उल्लास से भरता सुन्दर तन है,
वो मोम का गुड्डा कोई और नहीं मेरा प्यारा बेटा आरुष है।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
इस सौगात के लिए भगवान् का धन्यवाद क्या कहूँ,
न जाने कितने जन्मों से कितने रिश्तों में हमसाथ था वो आरुष है क्या कहूँ,
कभी वो मेरा बेटा, भाई, बहन के रिश्तों में बंधा था, सूरज की पहली किरण (आरुष) क्या कहूँ।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ।
© डॉ निधि जैन,
पुणे
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈