सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है “क़ैद”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 65 ☆

☆ क़ैद

हाँ, बहुत खूबसूरत दिख रहा था वो

इंसान को, दुनिया को,

पर छलनी में फंसा हुआ चाँद

किसी तरह क़ैद से निकलने के लिए

तड़प रहा था…

 

उसे देखकर कितनी सखियों ने

उस दिन अपने उपवास भी तोड़ दिया थे,

और उनके प्रीतम उनका हाथ पकड़ ले गए थे उन्हें भीतर

अपने हाथों से खाना खिलाने के लिए;

पर चाँद तो क़ैद था

छलनी में

और वो उसके पलकों के कोने से

आंसू की कुछ बूँदें

लुढ़ककर उसके गालों को गीला कर रही थीं!

 

न जाने कहाँ से

मुझे सुनाई दे गया उसका वो सुबकना

और मैं उसे सीढ़ी पर चढ़कर

ऊपर टंगी हुई छलनी में से निकाल दिया!

 

वो ख़ुशी-ख़ुशी आसमान में उड़ गया

और अपनी मदमस्त चाल में

घूमने लगा आवारा सा!

 

क़ैद किसे अच्छी लगती है-

चाहें वो कितनी भी खूबसूरत हो?

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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