डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज  प्रस्तुत है, महामारी के दौरान मध्यमवर्गीय परिवारों  की समस्याओं पर आधारित कहानी महामारी। )  

☆ कथा कहानी – महामारी

पम्मी और दम्मी दोनों सहेलियाँ एक काव्य गोष्ठी से लौट रही थी । पम्मी को अपनी कविता पढ़ने का पहला मौका मिला था, जब कि दम्मी के लिए यह चौथा कवि सम्मेलन था । यह जगह दम्मी के घर से बहुत दूर था । पम्मी भी  उसके घर से थोडी दूर पर रहती थी । आज दोनों साथ में काव्य गोष्ठी के लिए गई थी । वहां पर सबने अपनी-अपनी कविता पढ़ी और आते समय पम्मी ने एक टैक्सी बुक करी । घर दूर होने के कारण कोई भी आने के लिए तैयार नहीं था । अंत में एक टैक्सी ने आने के लिए स्वीकार किया । उसने पूछा, आपको कहां जाना है ?

तो पम्मी ने बताया कि हमें चामराज नगर जाना है । आप हमें वहां छोड देंगे। अभी तो शाम के सात बजे है ।

मेमसाब, मेरा घर भी उसी तरफ है । मैं आप लोगों को छोडता हुआ घर चला जाऊँगा। मेमसाब यह जगह बहुत दूर है । यहाँ पर आप लोगों को कोई भी टैक्सी नहीं मिलेगी । कहते हुए ड्राइवर ने दोनों को अपनी गाडी में बैठने के लिए कहा ।

जाते हुए पम्मी अपनी सहेली दम्मी को कह रही है कि, अरी! वो इन्दु ने बहुत ही अच्छा गीत प्रस्तुत किया । विद्या तो लाजवाब है । सब से अच्छा गीत तो आपने भी प्रस्तुत किया ।

ड्राइवर इन दोनों की बात सुन रहा था । अचानक उसने पूछा, मेमसाब आप लोग लिखते हो क्या ? अगर हो सके तो मेरी भी कहानी लिख दीजिए । सच में कभी लगता है कि हमारी भी कोई कहानी लिखकर देखें तो कितना दर्द है हमारी जिंदगी में ।

दम्मी ने उससे पूछा कि आपकी जिंदगी में ऐसा क्या हो गया है ? जिसकी वजह से आप इतने परेशान हो । कुछ बताएँगे आप । वैसे तो सबकी अपनी परेशानी होती है । सब यही समझते है कि हमारे दुःख ज्यादा है ।

मेमसाब मुझे दूसरों के बारे में पता नहीं है, लेकिन मेरे लिए तो एक-एक दिन बहुत महंगा है । लगता है कोई कहानी लिखकर दुनिया को क्यों नहीं बताता है । हर दिन एक नयी बात हम सीखते है । कहते हुए अपनी गाडी की रफ्तार कम करता है ।

दम्मी को उसकी बात सुनकर अजीब लगता है, वह कहती है, भैया ऐसा क्या है जो आप इतने दुखी है । अगर मुझे बतायेंगे तो कुछ कहानी के माध्यम से ही मदद कर सकती हूँ । मैं एक लेखिका हूं और कहानी लिखकर  लोगों तक आपके विचार पहुंचाने में मदद कर सकती हूं ।

तो सुनिए । मैं चामराजनगर के पास एक झौंपड़ी में रहता हूँ । मैंने पढ़ाई ज्यादा नहीं की है । मैंने दसवीं कक्षा तक ही पढाई की है । मैं बहुत नटखट था । उस समय मुझे पढ़ने का इतना शौक नहीं था, जितना कमाने का । लगा कि रुपया कमाना आसान है । पढ-लिखकर करना क्या है ? मेरे पिताजी ऑटो चलाते थे । वे चाहते थे कि मैं पढ लिखकर अच्छा काम करुँ । उन्हों ने मुझे बहुत मारा, मैंने उनकी एक न मानी और पढाई छोड दी । वे मेरा भला ही चाहते थे । मैं भी बहुत उद्दंड था । किसी की भी बात नहीं मानता था । सिर्फ अपने मन की सुनता था । एक दिन ऐसे ही जब सोचा कि पैसे कमाने है । कैसे? अब आगे करना क्या है? जब मैंने सोचा तो मुझे पापा का ऑटो तो नहीं चलाना था । मैंने पापा से कहा, आप चिंता ना करो । मैं अपनी जिंदगी का जुगाड कर लूंगा । मेरी चिंता में ही मेरे पापा का देहांत हो गया । घर की सारी जिम्मेदारी मेरे कंधो पर थी । मैंने भी बैंक से ऋण लेकर एक टैक्सी खरीदी । यही टैक्सी है मेमसाब ।

अब आपको क्या परेशानी है? कुछ भी समझ नहीं आ रहा है ? अभी तो आपका बैंक का ऋण भी चुकता हो गया   होगा । कहते हुए दम्मी शीशे की खिडकी से बाहर की ओर देखती है ।

मेमसाब अभी तो परेशानी के बारे में मैंने आपको बताया नहीं है। मेरी परेशानी कुछ और ही है । सुनिए तो! कहते हुए ड्राइवर अपनी जिंदगी की कहानी को आगे बढाता है । मेमसाब मैंने टैक्सी चलाना शुरु किया और बैंक का कर्ज भी मुझे ही चुकता करना था । अब मैं अपने कर्ज को देखूं या घर को । उसके ऊपर मेरी माँ ने मेरी शादी कर दी । मैंने सोचा कि मुझे बच्चे नहीं चाहिए । मैंने अपनी पत्नी को समझाया । रोज़ मैं टैक्सी लेकर भोर होते ही निकल पडता हूं और रात तक बाहर रहता हूं । जितनी कमाई होती है उससे थोडा कर्ज चुकता करता हूं और थोडा घर में देता हूं । एक दिन आपने भी सुना होगा की टैक्सीवालों ने आंदोलन किया था। हम भी टैक्सी खरीदते है और कमाई के लिए किसी कंपनी में काम करते है । जैसे अभी आपने एक एप के द्वारा मुझे बुलाया । मैं उन्हीं लोगों के लिए रुपये के वास्ते काम करता हूँ । आप जो रुपया मुझॆ देते हो उसमें से कुछ प्रतिशत उनके लिए होते है । सब ने सोचा कि अगर वे हमें थोडा वेतन ज्यादा दे तो अच्छा है । वही सोचकर उन्होंने आंदोलन किया था ।

हाँ सुना तो था । इतना तो पता चला कि वेतन बढ़ाने के लिए आंदोलन किया । क्या हुआ कुछ भी पता नहीं चला ? ऐसे तो होता ही रहता है । कहते हुए दम्मी कार में ठीक तरह से बैठती है ।

सुनिए मेमसाब । उस वक्त हमें आंदोलन में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया । हमारे घर की स्थिति बहुत बिगड चुकी थी । घर में मैं अकेला ही कमानेवाला था । रोज़ जो भी मैं कमाकर अपनी पत्नी को देता था, उसीसे गुज़ारा होता था । अगर मेरे घर जाने में देर हो गई तो घर पर सब मेरा इंतजार करते थे ।

अरे! तुम तो कह रहे थे कि तुम्हारे बच्चे नहीं है । घर में सब मतलब…..और तुम्हारे घर में और कौन-कौन है ? पूछते हुए कार में आगे के आइने में दम्मी उसका चेहरा देखती है ।

मेमसा’ब मेरे बच्चे अभी तक मैंने नहीं सोचा है । मेरे छोटे भाई और बहिन है, जिनकी पढाई और शादी अभी तक बाकी है । शायद मेरे पापा इसलिए ही परेशान थे कि मैं बडा बेटा हूं । घर की ओर ध्यान नहीं दे रहा हूं । आज घर में इतनी परेशानी है कि मैं चावल ले जाकर दू तभी घर में खाना बनता है । आंदोलन की वजह से घर में सब भूखे थे । घर में सब को देखकर मुझे भी परेशानी होती थी । मेरे आंखों में भी आंसू आते थे । मैं अपने आंसू किसी को नहीं दिखाता था । मुझे लगता था कि अगर मालिक मान गये तो सारी परेशानी दूर हो जाएगी । सिर्फ मैं अकेला नहीं था । हमारे जैसे अनेक लोग आंदोलन में शामिल थे ।  मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता था । बल्कि धीरे-धीरे माजरे का कुछ और ही रुख बदल गया । वहाँ पर हमारे यूनियन लीडर को कुछ पैसे दे दिये ताकि मामला रफा-दफा हो जाए । उसने एक हफ्ते के बाद रुपये लेकर मामले को दबा दिया ।

हम लोग इंतजार करते रहे कि कुछ अच्छा नतीजा निकलेगा । कुछ तो अच्छा होगा । मेमसाब सच तो यह है कि कुछ भी नहीं हुआ । बल्कि घर में परेशानी और बढ़ गई । मेमसाब अगर हो सके तो आप इस कहानी को ज़रुर लोगों के समक्ष रखियेगा ।

ड्राइवर पम्मी के घर के पास अपनी कार खडी करते हुए कहता है मेमसाब आपका घर आ गया है । एक हज़ार रुपये हुए है । वह रुपये लेकर वहां से चला जाता है । दम्मी और पम्मी दोनों उसके कार को ही देखते रह जाती  है ।

दम्मी को उसकी बात सुनकर बहुत दुख हुआ । उसने पम्मी से कहा, देखना मैं एक दिन इस ड्राइवर की कहानी लिखूंगी । लोगों को सचेत करना है कि पढाई करें । जीवन में पढना भी ज़रुरी होता है। आज नवयुवक पढाई के ओर कम ध्यान देते है,बाद में पछताते है । कम से कम स्नातक तो करना ही है वरना इस ड्राइवर के जिंदगी की तरह बर्बाद कर लेंगे । यह ठेकेदारों ने भी अपन वर्चस्व जमाकर रखा है । भ्रष्टाचार के बारे में भी मुझे बताना है ।

भ्रष्टाचार? मुझे तो भ्रष्टाचार के अलावा सिर्फ एक गरीब व्यक्ति के घर का दुख ही नज़र आया, कहते हुए पम्मी अपने घर की तरफ जाती है ।

दम्मी भी अपने घर लौटती है । रात के नौ बजे उसने सोचा की थोडा समाचार देख लेते है । बाद में खाना  खाऊँगी । जैसे ही उसने दूरदर्शन देखा, महामारी के कारण इक्कीस दिन का लोकडाउन घोषित किया गया है ।

दम्मी लोकडाउन सुनते ही परेशान हो गई । लोकडाउन मतलब कोई बाहर नहीं जाएगा । संपूर्ण देश में लोग अपने ही घर में कैद रहेंगे । दम्मी ने तुरंत सोचा कि घर में कुछ राशन है, उससे ही काम चलाना पड़ेगा । कोई दूसरा उपाय नहीं है । पूरे मोहल्ले में सन्नाटा है । दम्मी थोडी परेशान होकर अपनी बाल्कनी से देख रही थी ।  उसके घर के पास एक झौपडी है । वहाँ से आवाज़ आ रही है । वैसे तो रोज़ होता है, आज सन्नाटे की वजह से स्पष्ट रुप से सुनाई दे रही था । दम्मी मन ही मन सोचती है, मैं चाहकर भी उनकी आर्थिक स्थिति में मदद नहीं कर सकती हूँ । मध्यमवर्गीय परिवार की अपनी अलग दुविधा होती है । वे न तो गरीबी में आते है,न तो अमीरों की तरह रुपया किसी को दे सकते है । वह भूखे भी मर जाएँगे लेकिन किसी से भी नहीं मांगेगे । दम्मी अपनी असहायता को भी किसी से बांट नहीं सकती थी, वह मात्र एक मूक दृष्टा बनकर वहाँ पर सब देख रही थी ।

अरी ओ! कलमुही कुछ काम कर, उठ । पूरा दिन सोती रहती है । बच्चा तो हमने भी जना है, लेकिन ऐसे सोते नहीं रहते थे । आजकल की छोरियाँ पता नहीं क्या हो जाता है ? थोडा सा कुछ हो जाता है और आराम करने लगती है । आज अगर काम पर नहीं गए तो घर पर क्या बनाएंगे ? कुछ भी तो नहीं है । कहते हुए सांवली माही अपनी बहु कमली पर चिल्लाती है ।

कमली को तीन महीने हुए है । उसकी कमर में बहुत दर्द हो रहा है । उसका पति रोनक भी ऑटो चलाता है । अब घर में कोई कमाई नहीं थी । अब यह लोग करें तो भी क्या? माही सारा दुख नहीं झेल पाती थी  और कमली पर चिल्लाती है ।  बेचारी कमली!… उसका पति भी कमली का साथ नहीं देता । माही उसे अपने पिता जी के घर से कुछ रुपया लाने के लिए कहती है । कमली का मायका भी गरीब था । उपर से  पूरे देश में लोकडाउन था । आने-जाने की सुविधा भी नहीं थी । उसने गोपाल से कहा कि वह अपने मायके अभी नहीं जा सकती है । गोपाल ने भी उसकी बातों को अनसुना कर दिया ।

उसे पता चला कि कुछ लोग चलकर रास्ता पार करते हुए अपने घर पहुँच रहे है । मजदूरों के लिए शहर में रहना  बहुत ही मुश्किल था । अपने घर जाने के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं थी । सबने तय किया कि वे चलकर ही कई किलोमीटर का फासला पार करेंगे । बीच में रुककर थकान मिटा लेंगे । अब कमली को भी इस बात का पता चला । उसने भी तय किया, वैसे भी यहां पर उसकी कोई कद्र करनेवाला नहीं है । दूसरे दिन सुबह वह घर से निकली । घर में किसी ने भी उसे जाने से मना नहीं किया । उसका मायका बहुत दूर था ।

गर्भवती कमली थक जाती थी । पानी पीते हुए बीच में आराम करते हुए उसने कुछ किलोमीटर तय किए । बाद में वह अपने मायके नहीं पहुंच सकी । बीच में ही उसकी मृत्यु हुई । उसके घर पर पुलिस भी आई । माजरा दबा दिया         गया । माही बहुत चालाक थी । उसने सारी घटना में कमली की गलती को ही बताया । पुलिस भी वहां से चली गई । मैं सब देख रही थी । मैं  कमली के लिए कुछ न कर सकी, उसका दुख हमेशा के लिए रह गया । सच में लोकडाउन के कारण अच्छा भी हुआ है और बुरा भी । अच्छा तो बहुत कम लेकिन बुरा बहुत हुआ है ।  कितने परिवार परेशान हो रहे है । उससे अच्छा होता कि वे किसी महामारी के शिकार होकर मर जाते । जब मैंने ऐसा सोचा तो तुरंत मुझे टैक्सी ड्राइवर की बात याद आ गई । मुझे उसकी परेशानी कम और यह सब अधिक लगने लगा । मुझे लगा कि ड्राइवर से भी ज्यादा परेशानी इन लोगों की है ।

मुझे लगता था कि सिर्फ अनपढ लोग ही परेशान होते है । मैं इस सोच में गलत थी । मेरे पडोस में एक अध्यापक भी परेशान थे । एक दिन मैंने ऐसे ही उनके हालचाल के बारे में पूछ लिया था ।

क्या बताएँ दम्मी जी अभी तो नौकरी भी रहेगी कि या नहीं उसका पता नहीं है । हमारे यहाँ तो किसी से भी सवाल करने का अधिकार नहीं रखते है । उसके उपर तनख्वाह भी बहुत कम दे रहे है । मेरे दो बच्चे है, उनकी पढाई के लिए भी रुपये नहीं जोड़ पा रहा हूं । हम मध्यमवर्गीय परिवार भीख भी तो नहीं मांग सकते। हम लोग बहुत बुरी अवस्था में है । ऊपर से अभिभावक भी आंदोलन कर रहे है । बच्चे की फीस इस बार कम देंगे । हमारे पास तो फीस कम देने के लिए भी पैसे नहीं है । इस साल हम बच्चों का दाखिला नहीं करवायेंगे तो कुछ नहीं होगा । ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ? बच्चे का साल ही तो बरबाद होगा । सोच लेंगे कि हमारा बच्चा पांचवी में ही पढ रहा है ।  इसमें आप भी क्या कर सकती है ? हम सब अपने-अपने करम करते है, फल भी कर्मों का ही भुगत रहे है । दम्मी जी हमारी पढाई का कोई फायदा नहीं है, कहते हुए दुःखी होकर वे अपने घर के अंदर चले जाते है ।

दम्मी खडी-खडी इन सबके बारे में सोचते हुए लग रहा है कि समाज में परेशानी ही ज्यादा है । कोई भी तो सुखी नहीं है । कई लोग दुःखी है, अब भगवान ने हमें भी तो इतना नहीं दिया है कि किसी परिवार की आर्थिक परेशानी दूर कर सकें । सिर्फ स्वयं का देख लें, बहुत बडी बात है । यह महामारी सबको ले डूबेगी, ऐसा लगता है ।

©  डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

लेखिका व कवयित्री, सह प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, जैन कॉलेज-सीजीएस, वीवी पुरम्‌, वासवी परिसर, बेंगलूरु।

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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