श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 66 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
जीवन में उत्कर्ष की, एक यही है राह
सत्य, अहिंसा, प्रेम की, रखें सदा ही चाह
सदा वक्त पर लीजिये, कर्मों का संज्ञान
चलें धरम की राह जो, उसको मिलता मान
जिसने जीवन में रखा, मर्यादा का मान
सदाचरण शालीनता, देते तब सम्मान
दिन भर देता रोशनी, सांझ ढले विश्राम
सुबह सुहानी लालिमा, दिनकर तुझे प्रणाम
नई सदी के दौर में, मोबाइल वरदान
घर बैठे ही कीजिये, सभी रसों का पान
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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