सुश्री शुभदा बाजपेयी
(सुश्री शुभदा बाजपेई जी हिंदी साहित्य की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी एक बेहतरीन ग़ज़ल “मुहब्बत ”. )
☆ ग़ज़ल – मुहब्बत ☆
भयानक था हरिक मंज़र अभी तक डर नहीं जाता
हमारे शह्र से क्यूं दूर ये मंज़र नहीं जाता
मुझे मालूम है वो हाले दिल मेरा समझ लेंगे
करूं क्या, हाले दिल उन तक कभी खुलकर नहीं जाता
मुहब्बत है मुझे उनसे मगर ज़ाहिर करूं कैसे
झिझक, शर्मो हया का दिल से डर क्यों कर नहीं जाता
कभी ज़ख़्मे मुहब्बत से मिली है जीते जी राहत
तडपना पडता है इन्सां को जब तक मर नहीं जाता
मुहब्वत करने वाले का न पूछो हाल ऐ ‘शुभदा’
कभी वो घर नहीं जाता कभी दफ्तर नहीं जाता
© सुश्री शुभदा बाजपेयी
कानपुर, उत्तर प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈